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आईआईटी मद्रास को इंडियन ग्रीन बिल्डिंग का प्लैटिनम सर्टिफिकेशन

IIT Madras :- आईआईटी मद्रास को ‘इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) ने प्लैटिनम सर्टिफिकेशन’ प्रदान किया है। इस तरह आईआईटी मद्रास देश के सबसे बड़े और सर्वोच्च रेटिंग प्राप्त करने वाले स्वच्छ परिसरों में से एक हो गया है। प्लेटिनम सर्टिफिकेशन, संसाधनों के सदुपयोग और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी के लिए दिया जाता है। इससे न केवल परिचालन का खर्च कम होता है बल्कि अनमोल संसाधन भी बचते हैं। आईआईटी मद्रास ने इस आकलन में 90 में 82 अंक प्राप्त कर सबको प्रभावित किया है। 

आईआईटी मद्रास ने एक ठोस कचरा दहन संयंत्र स्थापित किया है। प्रतिदिन दो टन मिश्रित कचरे को प्राॅसेस करने में सक्षम इस संयंत्र के लगने से लैंडफिल में कचरे का अंबार नहीं लगेगा। आईजीबीसी प्लैटिनम की मान्यता को महत्वपूर्ण बताते हुए आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर लिजी फिलिप, डीन (योजना) ने कहा, “यह मान्यता विभिन्न मानकों पर संस्थान परिसर के आकलन के बाद दी जाती है, जैसे कि संसाधनों के उपयोग में दक्षता, पर्यावरण की जिम्मेदारी बरतते हुए तैयार डिजाइन और चारदीवारी के अंदर पर्यावरण की गुणवत्ता आदि। 

सस्टेनेबल लैंडस्केप, परिवहन के विकल्प और जागरूकता एवं शिक्षा पर ज्यादा ध्यान देना इस पहल के अभिन्न अंग हैं। ग्रीन कैंपस की मान्यता मिलने से न केवल लंबी अवधि में खर्च बचता है, बल्कि संस्थानों की प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। आईआईटी मद्रास देश के सबसे बड़े परिसरों में से एक है और 611 एकड़ में फैला है। ठोस कचरा दहन संयंत्र के बारे में प्रोफेसर लिजी फिलिप ने कहा, ‘‘वर्तमान में संस्थान के अंदर प्रतिदिन लगभग 4 टन ठोस कचरा निकलता है। कचरों को स्रोत पर अलग-अलग किया जाता है। जैविक कचरे का कंपोस्ट बनता है या फिर एनेरोबिक डाइजेशन किया जाता है। संस्थान में 1 टन क्षमता का एक बायोडाइजेस्टर पहले से ही कार्यरत है और 2 टन क्षमता का एक और बायोडाइजेस्टर निर्माणाधीन है। इस तरह उत्पन्न बायोगैस का उपयोग छात्रावास में खाना पकाने के लिए किया जा रहा है। 

अकार्बनिक कचरे अलग रखे जाते हैं और पुनर्चक्रण के लिए विक्रेताओं को बेच दिए जाते हैं। इसके बावजूद प्रतिदिन लगभग 300 से 400 किलोग्राम मिश्रित कचरा रह जाता है। अब तक इस कचरे को लैंडफिल के लिए भेजा जाता रहा है। लेकिन यह संयंत्र लगने के बाद ‘जीरो वेस्ट डिस्चार्ज’ परिसर होगा। इस संस्थान परिसर की छतों और अन्य क्षेत्रों से बहने वाले 100 प्रतिशत वर्षा जल का संचय और उपयोग करते हुए इस पानी को दो झीलों में पहुंचने की व्यवस्था की गई है, जिनकी कुल क्षमता क्रमश: 165 मिलियन लीटर और 105 मिलियन लीटर है। इसके अलावा आईआईटी परिसर में बायोगैस संयंत्रों और वर्मीकम्पोस्टिंग के तालमेल से 100 प्रतिशत खाद्य अपशिष्ट और परिसर के अन्य अपशिष्ट का उपचार कर अपशिष्ट प्रबंधन भी है। 

आईआईटी के मुताबिक परिसर के अपशिष्ट जल के उपचार के लिए एक अत्याधुनिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) है, जिसकी क्षमता 4 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) की है। उपचार के बाद जल का उपयोग फ्लश करने, लैंडस्केप के काम और कूलिंग टॉवर के लिए जल की आवश्यकता 100 प्रतिशत पूरी करने में किया जाता है। आईआईटी का कहना है कि यह जिम्मेदारी के साथ जल प्रबंधन की मिसाल है। आईआईटी के मुताबिक परिसर के कुल क्षेत्र के 70 प्रतिशत यानी 16,48,939 वर्ग मीटर भूभाग में पेड़-पौधों की हरियाली है। परिसर में पेड़ों की संख्या 65,425 है जो किसी को प्रभावित करती है। इससे पर्यावरण की सुंदरता और हवा की गुणवत्ता और जैव विविधता भी बढ़ती है। (आईएएनएस)

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By NI Desk

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