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इजराइल बनाम हमास के झगड़े की जड़ क्या?

जिस जगह आज इजराइल है वहां 1948 में फिलीस्तीनी मुसलमान ही बहुसंख्या में थे। यूएन ने 48 फीसदी मुसलमानों को वइजराइलको 44 फीसदी जमीन दी। तब से मुसलमान यह कहते आए हैं किइजराइल उनकी जगह को खाली करें क्योंकि यह देश उनका है। मगरइजराइलपूरी जमीन को अपना मानता है। सबसे बड़ी समस्या यह हुई कि जिस गाजा पट्टी को लेकर विवाद चल रहा है उसमें यरूशलम भी आता हैं। यरूशलम में मुसलमानों कीतीसरे सबसे पवित्र स्थान अल अक्सा मस्जिद है। इसी के साथ साथ ईसाईयों के पवित्र स्थल भी हैं तो यहूदियों का मंदिर भी है।

जब से फिलस्तीनी हमास औरइजराइलके बीच खूनखराबा शुरु हुआ है उसे देख सुन कर आम पाठक के मन में सवाल है कि आखिर इस टकराव की मूल वजह क्या है? लोग इस टकराव की वजह जानने के लिए उत्सुक है। यहां पर यह बताना जरुरी हो जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यहूदियों से नफरत करने वाले हिटलर ने उनका निर्मम नरसंहार करवाया था। खुद को आर्य मानने वाले हिटलर ने 60 लाख निर्दोष यहूदियों को जेलों, गैस चैम्बर में भरवाकर उनको मरवा डाला था। वह खुद को विशुद्ध आर्य मानता था। हिटलर ईसाई होने के बावजूद पूरे योरोप में यहूदी लोगों की गिरफ्तारी करवाने के बाद उन्हें गैस चैम्बर में भेजकर जहरीली गैस से मरवाकर उनका नामो निशाने मिटाने पर आमादा था।

इसमें न सिर्फ पुरूष बल्कि महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। जब विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो पूरी दुनिया के सामने तब सबसे बड़ी समस्या थी कि सदियों से इधर-उधर भटक रहे यहूदियों का सुरक्षित रहना कहां संभव है? क्या उनके लिए देश बन सकता है? तब विश्व की महाशक्तियों व संयुक्त राष्ट्र ने इसका हल खोजने के लिए 29 मई 1948 को अरबों के बीच फंसी एक जगह को यहूदियों के लिए तय किया। उनके लिए देश बनाने का फैसला किया? वही अबइजराइलहै। उससे मात्र एक साल पहले अंग्रेजों ने भारत को आजाद करते हुए उसे भारत और पाकिस्तान में बांटा था। इसकी वजह से दोनों देशों के बीच जो दुश्मनी पैदा हुई वो आज तक चली आ रही है।

जिस जगह आज इजराइल है वहां 1948 में फिलीस्तीनी मुसलमान ही बहुसंख्या में थे। यूएन ने 48 फीसदी मुसलमानों को वइजराइलको 44 फीसदी जमीन दी। तब से मुसलमान यह कहते आए हैं किइजराइल उनकी जगह को खाली करें क्योंकि यह देश उनका है। मगरइजराइलपूरी जमीन को अपना मानता है। सबसे बड़ी समस्या यह हुई कि जिस गाजा पट्टी को लेकर विवाद चल रहा है उसमें यरूशलम भी आता हैं। यरूशलम में मुसलमानों कीतीसरे सबसे पवित्र स्थान अल अक्सा मस्जिद है। इसी के साथ साथ ईसाईयों के पवित्र स्थल भी हैं तो यहूदियों का मंदिर भी है। ईसाइयों का मानना है कि ईसा मसीह का जन्म बेलहम स्थान पर हुआ था जोइजराइलमें ही है। वहां उन्हें यरूशलम में फांसी पर लटकाया गया था। इसके अलावा यहां यहूदियों के पवित्र स्थान भी है। इस स्थान को लेकर तीनों के बीच शुरु से ही झगड़ा चला आ रहा है। आपसी टकराव भी होते रहते हैं। सबसे अहम टकरावइजराइलऔर फिलीस्तीन और उनके समर्थक मुस्लिम देशों के बीच 1957, 1967 और 1973 में हुए है। इन टकरावों मेंइजराइलकी जहा जीत हुईवही उसके इलाके का विस्तार भी होता गया। इजराइल ने अपनी सुरक्षा के नाम पर मिस्र, जोर्डन के इलाकों का कब्जे में किया।

पहले यरूशलम अरब क्षेत्र और फिर जोर्डन के पास था। उन लोगों ने वहां की जमीन यहूदियों को ऊचे भाव पर बेचनी चालू कर दी। यहूदियों के पास काफी पैसा था। यहूदी लोग पहले से ही रूपए का लेन देन किया करते थे और किसी भी कीमत पर अपना देश बनाने और बढ़ाने को उत्सुक थे। इस वजह सेइजराइलमें उनकी संख्या बढ़ती गई। आज हालत यह है कि वहां की 88 फीसदी जमीन पर उनका कब्जा है। जबकि मुसलमान मात्र 12 फीसदी जमीन पर रह गए हैं। यहां यह बताना जरुरी है कि जर्मनी में अपनी जान बचाने के लिए अल्बर्ट आइस्टीन जैसे वैज्ञानिक समेत सैकड़ों लोग जर्मनी छोड़कर अमेरिका गए थे।

अरबों और आम मुसलमानों का मानना है कि फिलस्तीन की जमीन उनकी है जबकि यहूदी और इजराइली अपनी आदि जन्मस्थली, मातृभूमिमानता है। उसने बाद में यरूशलम को अपनी राजधानी घोषित किया जबकि उसकी राजधानी पहले तेल अवीव थी।

हमास के ताजा हमले के बाद पूरी दुनिया का ध्यान इस इलाके पर केंद्रीत है। हमास एक आतंकवादी संगठन हैं जो कि फिलीस्तीनियों की आजादी के लिए गठित हुआ था। इससे पहले फिलीस्तीनी मुक्ति आंदोलन का संगठन पीएलओ और उसके  नेता यासिर अराफात थे। उनके बाद हमास का गाजा पट्टी पर रूतबा बना। इसे ईरान से मदद मिलती रही है। ध्यान रहे 1972 ओलंपिक के दौरान फिलीस्तानी आंतकियों ने इजराइलके खिलाड़ियों को मारा था तब  इजराइलकी सुरक्षा एजेंसी मोसाद ने बाद में एक-एक आंतकी को खोज कर उन्हे मारा।

ऐसा ही एक और प्रसंग विमान का है। पेरिस जा रही उड़ान को आंतकी पहले लीबिया ले कर गए। वहा यूंगाड़ा ले गए। वहाराष्ट्रपति  ईदी अमीन थे। ईदी अमीन तानाशाह और मुसलमान होने के कारणइजराइलसे नफरत करता था।इजराइलने एक हफ्ते के अंदर वहां हमला करके एयरपोर्ट की बिल्डिग में कैद 148 लोगों को रिहा कराया। इजराइल के उस आपरेशन से देश की वैश्विक बहादुरी प्रमाणित हुई।

इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद यहां भारत की;रॉ’एजेंसी जैसी है। इस हमले की सैनिक टुकड़ी में एक  कमांडर योनातन नेतनयाहू थे।जो कि मौजूदा इजरायली प्रधानमंत्री नेतनयाहू के बड़े भाई थे। उनकी हत्या के बादइजराइलमें जो आक्रोश पैदा हुआ तो उससे नेतन्याहू परिवार की चर्चाएं हुआई।  नेतन्याहू तब विदेश में पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंनेइजराइल लौट कर पहले सेना में काम किया फिर राजनीति में में उतरे।

8 अक्तूबर 2023 के हमास हमले से इजराइल राष्ट्रव्यापी रोष स्वाभाविक था। नेतन्याहू सरकार ने  हमास को जड़ से मिटाने की कसम खाते हुए गाजा में जहां हमास के ठिकानों पर हमला किया है वही  13 अक्तूबर को लोगों को 24 घंटे के अंदर गाजा के उत्तर भाग से निकलकर दक्षिणी भाग जाने का अल्टीमेट दिया है। इजराइलने गाजा पट्टी का पानी, बिजली और सप्लाई बंद कर रखी है।

हालांकिइजराइलने अपने कुछ बंधकों को छुड़ा लेने और हमास के कंमाडरों को मार देने का दावा किया है। लेकिन न इजराइल चैन से बैठने वाला है और न हमास के ल़डाके भागने वाले है। टकराव गंभीर है और यह पूरे पश्चिम एसिया में फैल सकता है। तभी कई जानकार तीसरे विश्व युद्ध की आशंका जतला रहे है।

By विवेक सक्सेना

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

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