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चुनावी बॉन्ड पर अदालत के सवाल

नई दिल्ली। राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए लाई गई चुनावी बॉन्ड की योजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि इस योजना में गोपनीयता है लेकिन वह सिर्फ विपक्षी पार्टियों के लिए है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के लिए गोपनीयता नहीं है और न केंद्रीय एजेंसियों के लिए गोपनीयता है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सवालिया लहजे में कहा कि विपक्षी पार्टियां क्यों नहीं चंदे के बारे में जानकारी ले सकती हैं? सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि क्या सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि इस योजना में प्रोटेक्शन मनी या बदले में लेन-देन शामिल नहीं होगा?

गौरतलब है कि केंद्र सरकार 2017 में चुनावी बॉन्ड की योजना ले आई थी, जिसे 2018 में लागू किया। इस योजना में कोई भी व्यक्ति या कंपनी स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से बॉन्ड खरीद सकते हैं और उसे पार्टियों को दे सकते हैं। बॉन्ड मिलने के दो हफ्ते के भीतर पार्टियों को इसे बैंक में जमा कर कर कैश कराना होता है। इसमें बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान गोपनीय रखी जाती है। सरकार का दावा है कि इससे राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। लेकिन दूसरी ओर विपक्ष और सिविस सोसायटी का दावा है कि इससे सत्तापक्ष को फायदा हो रहा है।

चुनावी बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दूसरे दिन बुधवार को सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले। इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अगर ऐसी बात है तो फिर सत्तारूढ़ दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है? विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी?

इस मामले में याचिका दायर करने वालों की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विजय हंसारिया ने से पैरवी की। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच कर रही है। इस मामले में चार याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम की याचिका भी है। सुनवाई के दौरान हंसारिया ने कहा कि इस योजना ने चुनाव आयोग को सभी सूचनाओं से पूरी तरह से बाहर कर दिया है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा- इसमें कोई संदेह नहीं है कि चुनावी बॉन्ड की योजना गोपनीयता रखती है। इसके पीछे की सोच सराहनीय है, लेकिन यह पूरी तरह से गोपनीय नहीं है। क्या एसबीआई के पास दानदाता की जानकारी नहीं है? एजेंसियों के लिए भी यह गोपनीय नहीं है? उन्होंने आगे कहा- क्या सरकार यह सुनिश्चित कर सकती है कि इस योजना में प्रोटेक्शन मनी या बदले में लेन-देन शामिल नहीं होगा? क्या यह कहना गलत होगा कि इस योजना से किकबैक को बढ़ावा मिलेगा? गौरतलब है कि पहले दिन की सुनवाई में 31 अक्टूबर को प्रशांत भूषण ने कहा था कि ये चुनावी बॉन्ड कुछ नहीं सिर्फ रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं।

By NI Desk

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