राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

पर अंहकार, आत्मविश्वास कायम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सेहत पर कोइई फर्क नहीं पड़ता है। उन्हे शपथ लेनी थी ले ली तो सब ठिक है।  शासकीय और राजनैतिक कसौटियों में कामयाब होने का गुमान यथावत है। संसद के इसी सत्र के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों का बिगुल बजा हुआ होगा। सितंबर में अधिसूचना होनी चाहिए। अपना मानना है कि मोदी-शाह विपक्ष शासित झारखंड को जैसे-तैसे जीतने की जुगत में है ताकि महाराष्ट्र में हारे तो क्षतिपूर्ति के नाते झारखंड में जीतने का नैरेटिव बने। इसलिए हेमंता बिस्वा, अमित शाह, शिवराजसिंह चौहान, राजनाथसिंह सभी का झारखंड में डेरा लगना है। हरियाणा में चौटाला परिवार के लोगों को और तोड़ने का काम होगा। हालांकि पहले ही सभी को तोड़ा हुआ है तो इस प्रदेश में भी ज्यादा विकल्प नहीं है। बावजूद इसके संभव है कि हरियाणा की गैर-जाट बहुल सीटों के वोटों का वह माइक्रो मेनेजमेंट हो जिससे करीबि मुकाबला बने।  

असली लड़ाई महाराष्ट्र में है। कहते है इस सप्ताह दिल्ली में महाराष्ट्र को लेकर विचार हुआ। एक फार्मूला देवेंद्र फड़नवीज को दिल्ली में संगठन का चेहरा बनाने का है और महाराष्ट्र में दो ओबीसी नेताओं को आगे करने का है। लेकिन इससे भाजपा का वहा शायद ही कुछ बने। इस सप्ताह उद्धव ठाकरे ने भाजपा को जो चुनौती दी है और आर-पार की लड़ाई का जो ऐलान किया है उससे विपक्ष का मनोबल जाहिर है। फिर अमित शाह ने शरद पवार के खिलाफ बोल कर भी सूपड़ा साफ का प्रबंध कर लिया है।  भाजपा प्रदेश में सम्मानजनक लड़ाई भी शायद ही कर पाएं। अपने को लगता नहीं कि भाजपा महाराष्ट्र में 60-70 सीटे भी जीत पाएं।  

जम्मू-कश्मीर का जहां सवाल है वहा तीनों राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव होते लगते है। तभी गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार जैसी जम्मू-कश्मीर में व्यवस्था का आदेश हाल में जारी किया। मतलब निर्वाचित सरकार बन जाए तब भी उपराज्यपाल के हाथों में अधिकारों की एड़वांस तैयारी। बावजूद इसके जम्मू क्षेत्र में घुसपैठियों की जो हरकते है तो यह नामुमकिन नहीं है कि केंद्र सरकार चुनाव मुल्तवी करें। 

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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