IND VS AUS: 2014 के विराट, 2018 के विराट, और अब 2024 के विराट—इन वर्षों में विराट कोहली का कद, ब्रांड वैल्यू, और फैंस की उम्मीदें लगातार बढ़ी हैं।
इन दस सालों में उन्होंने ढेरों रन बनाए, दुनिया के बेहतरीन गेंदबाजों की जमकर धुनाई की, और खुद को दुनिया का नंबर वन बल्लेबाज साबित किया।
हालांकि, 2014 में इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन ने उनकी जो कमजोरी उजागर की थी—ऑफ स्टंप के बाहर जाती गेंदों पर परेशानी—वो आज भी कोहली की बल्लेबाजी में नजर आती है।
विराट ने इस कमजोरी को दूर करने के लिए लगातार काम किया है, लेकिन यह समस्या कभी-कभी उभर कर सामने आ जाती है।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एडीलेड और पर्थ की पिचों पर भी यह कमजोरी दिखी, जहां ऑफ स्टंप के बाहर जाती गेंदों पर वह अपना विकेट गंवा बैठे।
टेस्ट क्रिकेट में अब यह एक आम रणनीति बन गई है—विराट कोहली को आउट करने के लिए ऑफ स्टंप के बाहर की गेंद डालना।
विराट का सफर बेशक प्रेरणादायक रहा है, लेकिन उनकी यह पुरानी कमजोरी अभी भी उनके खेल का हिस्सा बनी हुई है।
क्या इस बार विराट अपने गेम प्लान में बदलाव कर इस चुनौती का सामना करेंगे? यह देखना दिलचस्प होगा।
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विराट के 10 साल में एक ही जाल
2014 का इंग्लैंड दौरा विराट कोहली के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था। इंग्लैंड के तेज गेंदबाज जेम्स एंडरसन ने अपनी सटीक लाइन और लेंथ से विराट की बल्लेबाजी में ऐसी कमजोरी उजागर की, जो पहली बार सबकी नजर में आई।
ऑफ स्टंप के बाहर जाती गेंदों पर विराट बार-बार अपना विकेट गंवाते रहे, और पूरी सीरीज में यह कमजोरी उनके लिए सबसे बड़ी बाधा साबित हुई।
उस सीरीज में न केवल एंडरसन बल्कि बाकी इंग्लिश गेंदबाजों ने भी इस रणनीति का जमकर फायदा उठाया।
विराट खुद भी अपनी इस कमजोरी से परेशान थे। इंग्लैंड दौरे से लौटने के बाद उन्होंने अपनी बल्लेबाजी पर कड़ी मेहनत की और खुद को इस समस्या से उबरने के लिए तैयार किया।
2018 का इंग्लैंड दौरा उनके लिए पलटवार का मौका था। दुनिया की निगाहें विराट पर थीं, और उन्होंने अपने आलोचकों को करारा जवाब दिया।
इस बार एंडरसन और इंग्लैंड के बाकी गेंदबाज, जो 2014 में विराट पर हावी थे, उन्हीं के सामने बेबस नजर आए। विराट ने उस सीरीज में 10 पारियों में 59.30 की औसत से 593 रन बनाए और अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया।
इस प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया कि विराट कोहली न केवल मॉडर्न क्रिकेट के किंग हैं, बल्कि मुश्किल हालात से उबरने की उनकी क्षमता उन्हें और भी खास बनाती है।
कोहली की लड़ाई ‘विराट’ से
2018 में इंग्लैंड के खिलाफ शानदार प्रदर्शन से विराट कोहली ने अपनी बल्लेबाजी की कमजोरी पर काबू पाते हुए आलोचकों को चुप कर दिया था।
लेकिन इसके बाद, ऑफ-स्टंप के बाहर जाती गेंदों पर उनकी समस्या एक बार फिर सिर उठाने लगी।
चाहे घर हो या विदेशी पिचें, गेंदबाज लगातार इस रणनीति से विराट को फंसाने में सफल हो रहे हैं। यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में टेस्ट क्रिकेट में विराट का औसत गिरा है।(IND VS AUS)
जिस बल्लेबाज ने लसिथ मलिंगा, डेल स्टेन, मिचेल जॉनसन, और मोहम्मद आमिर जैसे विश्व स्तरीय गेंदबाजों को हावी होने का मौका नहीं दिया, वह आज ऑफ-स्टंप के बाहर की गेंदों के जाल में फंसता नजर आ रहा है।
नेट्स पर नए-नए तरीकों से खुद को तैयार करने वाले विराट को अब इस समस्या का समाधान भी नए दृष्टिकोण से खोजना होगा।
ब्रिसबेन में चुनौती(IND VS AUS)
ब्रिसबेन में विराट नेट्स पर अपने ट्रिगर मूवमेंट को सुधारते हुए दिखे, लेकिन वह जानते हैं कि गाबा की तेज और उछालभरी पिच पर रन बनाने के लिए उन्हें अपने शॉट चयन पर कड़ी निगरानी रखनी होगी।
सचिन तेंदुलकर की 2004 की सिडनी टेस्ट पारी की याद ताजा करना यहां जरूरी है, जब सचिन ने अपना पसंदीदा कवर ड्राइव छोड़कर संयम दिखाया और एक ऐतिहासिक दोहरा शतक लगाया।
एडिलेड टेस्ट की दोनों पारियों में विराट का आउट होने का पैटर्न—स्टार्क और बोलैंड की आठवें स्टंप की गेंदों पर ललचाना—कहीं न कहीं चिंता बढ़ा रहा है।
गाबा की चुनौती विराट के लिए बड़ी होगी, जहां ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज एक बार फिर उन्हें फंसाने की तैयारी में होंगे।
क्रिकेट प्रशंसक अब यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि क्या विराट इस मानसिक और तकनीकी चुनौती को पार कर पाएंगे और अपने खेल में फिर से स्थिरता ला सकेंगे।