त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान से पहले बड़ा सवाल यह है कि किंग मेकर की भूमिका किसकी होगी? इससे पहले कभी भी किंगमेकर की जरूरत नहीं पड़ी है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल गया था। उसने 60 सदस्यों की विधानसभा में अकेले 36 सीटें जीती थीं। इसके बावजूद उसने अपनी सहयोगी आईपीएफटी के साथ तालमेल किया था, जिसको आठ सीटें मिली थीं। उससे पहले लगातार 25 साल सीपीएम अपने दम पर सरकार बनाती रही थी। इस बार चारकोणीय लड़ाई है। हालांकि मुख्य मुकाबला त्रिकोणात्मक ही है फिर भी तृणमूल कांग्रेस जिस तरह से लड़ रही है उसे खारिज नहीं किया जा सकता है।
राज्य में भाजपा और आईपीएफटी गठबंधन का मुकाबला सीपीएम और कांग्रेस गठबंधन से है, जबकि तिपरा मोथा ने मजबूत तीसरा कोण बनाया है। तभी ऐसा लग रहा है कि इस बार शायद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत न मिले। ऐसे में कोई एक पार्टी किंग मेकर होगी। चुनाव से पहले के 15 दिन की राजनीति से ऐसा लग रहा है कि प्रद्योत देबबर्मा की तिपरा मोथा किंग मेकर की भूमिका निभा सकती है। जनजातीय समुदाय के बीच बहुत मजबूत असर रखने वाली इस पार्टी को एसटी के लिए आरक्षित 20 में से सबसे ज्यादा सीट मिलने का अनुमान है। अगर तिपरा मोथा को ज्यादा सीटें मिलती हैं, इसका मतलब होगा कि आईपीएफटी बहुत मामूली सीटों पर सिमटेगी। तब भाजपा को तिपरा मोथा की जरूरत पड़ सकती है। हालांकि चुनाव प्रचार में भाजपा के शीर्ष प्रचारकों ने इस पार्टी को बहुत अटैक किया है इसलिए सीपीएम और कांग्रेस के साथ जाने में भी उसे दिक्कत नहीं होगी। सीपीएम के साथ 13 सीटों पर लड़ रही कांग्रेस भी किंगमेकर हो सकती है।