शरद पवार और अजित पवार की राजनीति को समझना किसी के लिए मुश्किल है। उनकी राजनीति को लेकर सहयोगी पार्टी कांग्रेस परेशान है तो भाजपा के नेता भी उलझन में हैं कि असल में सीनियर और जूनियर पवार क्या राजनीति करना चाह रहे हैं। यह भी एक बड़ा सवाल है कि दोनों एक राजनीतिक खेल में अपनी अपनी भूमिका निभा रहे हैं या दोनों के खेल अलग हैं? कांग्रेस के अलावा दूसरी विपक्षी पार्टियां, जो अगले लोकसभा चुनाव से पहले एक मोर्चा बनाने का प्रयास कर रही हैं वो भी पवार की राजनीति को समझने की कोशिश में हैं।
सबसे पहले तो यह गुत्थी सुलझाने की कोशिश हो रही है कि शरद पवार की पार्टी जब पूरे बजट सत्र में अदानी के मसले पर विपक्ष के साथ रही और जेपीसी बनाने की मांग करती रही तो सत्र खत्म होते ही पवार ने कैसे जेपीसी की मांग का विरोध कर दिया और कैसे अदानी के समर्थन में उतर गए? पवार पहले भी ऐसा कर चुके हैं। वे विपक्ष के साथ हैं तो उसके साथ दिखना चाहते हैं, महाराष्ट्र की राजनीति करते हैं तो कॉरपोरेट के साथ भी दिखना चाहते हैं और परिवार केंद्रीय एजेंसियों की मार से सुरक्षित रहे इसके लिए वे केंद्र सरकार और भाजपा के साथ भी दिखना चाहते हैं। वसीम बरेलवी का यह शेर उनके राजनीतिक जीवन का सूत्र है- उसी को जीने का हक है जो इस जमाने में, इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए।
पवार सीनियर से ज्यादा उलझी हुई राजनीति अजित पवार की है। उन्होंने अदानी के मसले पर अपने चाचा के स्टैंड का समर्थन किया और कहा कि यह पार्टी की लाइन है। तभी सवाल है कि वे इसके अलावा जो राजनीति कर रहे हैं उसे पार्टी लाइन माना जाए या नहीं? उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री की लेकर छिड़े विवाद का खुल कर विरोध किया और कहा कि यह नॉन इश्यू है। इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम के मसले पर अपने चाचा से अलग लाइन ली। शरद पवार ने पिछले दिनों विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक करके ईवीएम की कमियों पर चर्चा की थी लेकिन अजित पवार ने कहा है कि ईवीएम से गड़बड़ी नहीं की जा सकती है। वह पूरी तरह से ठीक है। इसके साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जम कर तारीफ भी की। क्या यह भी पार्टी लाइन है?
इसके अलावा एक दूसरी खबर यह है कि हाल के दिनों में यह दूसरी बार हुआ कि अजित पवार 24 घंटे से ज्यादा समय के लिए संपर्क से बाहर हो गए थे। उनका किसी से संपर्क नहीं था। बाद में उन्होंने कहा कि वे कई दिन से सोए नहीं थे इसलिए फोन वगैरह बंद कर लिया था। ये सारा घटनाक्रम बता रहा है कि महाराष्ट्र में पवार परिवार कोई खेल रच रहा है। सबको पता है कि पवार का खेल तब तक पता नहीं चलता है, जब तक वे खेल नहीं जाते हैं। याद करें कैसे अजित पवार ने देवेंद्र फड़नवीस की सरकार बनवाई थी और उप मुख्यमंत्री की शपथ ले ली थी। बाद में वे पार्टी में लौट आए थे। अब जाकर फड़नवीस ने कहा है कि अजित पवार ने उस समय जो किया था वह शरद पवार की सहमति से किया था।