उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल और पुरानी सहयोगी कांग्रेस पार्टी ने मिल कर एक दबाव समूह बना लिया है। सपा और रालोद मिल कर विधानसभा चुनाव लड़े थे और बाद में रालोद के नेता जयंत चौधरी ने भरोसा दिलाते हुए कहा कर आगे के चुनाव भी दोनों पार्टियां साथ लड़ेंगी। उसके बाद सपा ने उनको अपने कोटे से राज्यसभा में भी भेजा। इसके बावजूद पिछले दिनों जब कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा उत्तर प्रदेश से गुजरी तो सहयोगी समाजवादी पार्टी से अलग हट कर रालोद ने यात्रा में शामिल होने का फैसला किया। खुद जयंत चौधरी यात्रा से नहीं जुड़े लेकिन बागपत, शामली और कैराना में उनकी पार्टी के नेताओं और पदाधिकारियों ने यात्रा में हिस्सा लिया।
ध्यान रहे कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को भी यात्रा में शामिल होने क न्योता दिया था। इन दोनों पार्टियों ने यात्रा का समर्थन किया और राहुल गांधी को शुभकामना दी लेकिन यात्रा में शामिल नहीं हुए। रालोद के साथ साथ भारतीय किसान यूनियन के सदस्य भी यात्रा से जुड़े और बाद में जब यात्रा हरियाणा पहुंची तो किसान नेता राकेश टिकैत भी यात्रा में शामिल हुए। सो, किसान आंदोलन का केंद्र रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दो मजबूत ताकतों का कांग्रेस की यात्रा से जुड़ना एक बड़ा संकेत है। सपा और रालोद गठबंधन में अगर कांग्रेस जुड़ती है तो कांग्रेस और रालोद का दबाव समूह मजबूत होगा और ज्यादा सीटों की दावेदारी होगी। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सिर्फ एक लोकसभा सीट जीत पाई थी। उसकी कोशिश होगी कि तालमेल में उसे ज्यादा सीट मिले। दूसरी ओर रालोद की भी कोशिश होगी कि एक राज्यसभा देने के बदले सपा लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें कम न करे।