तमिलनाडु में बिहार के मजदूरों पर ज्यादती, उन्हें बंधक बनाने और हत्या कर देने की खबरें, जितने सुनियोजित तरीके से मीडिया और सोशल मीडिया में फैलाई गईं, वह कोई मामूली घटना नहीं था। यह नहीं मानना चाहिए कि किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के एक समूह ने गलती से या शरारतपूर्ण तरीके से इस तरह की खबरें फैलाईं। यह पूरी तरह से राजनीतिक मामला है, जिसका मकसद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और उनकी पार्टी डीएमके को हिंदी पट्टी में विलेन बनाने का है। बिहारी मजदूरों पर अत्याचार के बहाने तमिलनाडु सरकार और खासतौर से स्टालिन को हिंदी और उत्तर भारतीयों का विरोधी ठहराने का प्रयास किया जा रहा है। इसका दूरगामी मकसद है। इस मकसद की एक झलक बिहार में दिखी, जब भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने स्टालिन के समारोह में शामिल होने के लिए तेजस्वी यादव पर हमला किया।
ध्यान रहे एक मार्च को स्टालिन के 70वें जन्मदिन के कार्यक्रम में तेजस्वी शामिल हुए। वहां स्टालिन के नेता बनाने की चर्चा हुई और यह संदेश निकला कि स्टालिन विपक्ष को एकजुट कर सकते हैं। उसी समय तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर अत्याचार की खबरें वायरल हुईं। पुरानी और दूसरे राज्यों की वीडियो पोस्ट करके बताया गया कि एक दर्जन बिहारी मजदूरों की हत्या हिंदी बोलने के कारण कर दी गई है। वीडियो में बताया गया कि पूछ पूछ कर हिंदी बोलने वालों की हत्या हो रही है। सोशल मीडिया में वायरल हो रहे वीडियो की पुष्टि किए बगैर हिंदी के कई बड़े अखबारों ने इसकी खबर छापी। पटना के अखबारों में कई दिन तक लीड खबर बनी। भाजपा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी पर हमला किया। दबाव में नीतीश को चार सदस्यों की एक टीम भेजनी पड़ी जांच के लिए। अंत में पता चला कि सब कुछ फर्जी था। इससे पहले किसी फर्जी खबर को लेकर इतने व्यवस्थित तरीके से अभियान नहीं चला था। जाहिर है पहले ही स्टालिन और उनकी सरकार की साख खराब करने का अभियान शुरू हो गया ताकि उनके साथ हिंदी पट्टी के नेता जुड़ें तो इसे मुद्दा बनाया जा सके।