चुनाव आयोग ने तीन पार्टियों- तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और सीपीआई का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा समाप्त किया। ऐसा लग रहा है कि शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई ने इसे बहुत गंभीरता से लिया है। सीपीआई ने चुनाव आयोग से फैसले पर फिर से विचार करने को कहा है तो ममता बनर्जी की पार्टी कह रही है कि अगर आयोग फैसले पर विचार नहीं करता है तो पार्टी अदालत में इस फैसले को चुनौती देगी। तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने चुनौती देने का आधार भी तलाश लिया है। हालांकि यह तय नहीं है कि अदालत उस पर कितना ध्यान देती है।
तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि 2016 में चुनाव आयोग ने पार्टियों को राष्ट्रीय या राज्यस्तरीय पार्टी का दर्जा देने के नियम बदले थे। उसी समय तृणमूल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्ज मिला था और उस नियम के मुताबिक 10 साल बाद ही यानी 2026 में ही इसकी समीक्षा हो सकती है। सो, तृणमूल की चुनौती का आधार यह होगा कि आयोग ने समय से पहले उसके स्टैट्स की समीक्षा की है, जो नियम के मुताबिक गलत है। दूसरी ओर कहा जा रहा है कि चूंकि अगले साल लोकसभा का चुनाव है और पार्टियों को उनके दर्जे के हिसाब से आम चुनाव में महत्व मिलता है इसलिए समय से पहले समीक्षा की गई है। उधर सीपीआई ने चुनाव आयोग को अपना इतिहास याद दिलाया है और कहा है उसने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था, उसका करीब एक सदी का इतिहास है और पूरे देश में उसका आधार है। हालांकि आयोग इस अपील पर सुनवाई करेगा इसमें संदेह है।