बिहार में गंगा नदी पर बन रहा एक पुल गिर गया है। करीब सवा तीन किलोमीटर की लंबा में बन रहे इस पुल का सौ मीटर का हिस्सा गिर गया और कई पिलर भी गिर गए। ऐसा लग रहा है कि पुल गिरने की घटना पर राज्य की गठबंधन सरकार में यह तय नहीं हुआ कि क्या प्रतिक्रिया देनी है। सो, सरकार के तीन अलग अलग नेताओं ने बिल्कुल अलग अलग कहानी सुनाई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और वन व पर्यावरण मंत्री तेज प्रताप यादव तीनों की कहानी में मैच नहीं था। अब सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ? आमतौर पर ऐसी घटना में सरकार का एक जैसा रिस्पांस होता है। तो क्या यह माना जाए कि किसी राजनीतिक कारण से सरकार के मंत्री अलग अलग बोल रहे हैं?
सबसे पहले उप मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री यानी सड़क निर्माण मंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि पिछले साल अप्रैल में भी इस पुल का एक हिस्सा गिरा था और तब वे विपक्ष में थे। इस तरह उन्होंने तब की भाजपा और जदयू सरकार पर आरोप शिफ्ट किया। इसके बाद उन्होंने कहा कि आईआईटी रूड़की से पुल के डिजाइन का अध्ययन कराया गया था और इसमें गड़बड़ी थी। इस आधार पर उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों ने बता दिया था कि पुल की डिजाइन में गड़बड़ी है इसलिए सरकार ने खुद ही पुल गिराने का फैसला किया ताकि इसका निर्माण फिर से कराया जा सके।
इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रतिक्रिया दी तो उन्होंने तेजस्वी यादव द्वारा बताई गई कोई बात नहीं कही। उन्होंने कहा कि पुल बनाने वाली कंपनी ने खराब निर्माण किया है और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह नहीं कहा कि सरकार ने पुल गिराने का फैसला किया है। इसके बाद वन व पर्यावरण मंत्री तेज प्रताप की एंट्री हुई, जिन्होंने कहा कि पुल गिरने के पीछे भाजपा का हाथ है। हालांकि उनकी इस बात को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। पर नीतीश और तेजस्वी के बयानों का अंतर किसी गहरी गड़बडी का संकेत देने वाला है।