एक्जिट पोल के अलावा कई और संकेत ऐसे हैं, जिनसे लग रहा है कि कर्नाटक में बदलाव हो सकता है। पिछले चुनाव के मुकाबले मतदान में एक फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले 2018 के चुनाव में 2013 के मुकाबले 0.67 फीसदी वोट बढ़ा था और सत्तारूढ़ कांग्रेस हार गई थी। इस बार 2018 के 72 फीसदी के मुकाबले 73फीसदी मतदान हुआ है। चुनावी आकलन के पारपंरिक तरीके में भी मतदान प्रतिशत बढ़ने को बदलाव का संकेत माना जाता है।
इसके अलावा एक संकेत जेडीएस के नेता एचडी कुमारस्वामी के हार स्वीकार करना है। उन्होंने भाजपा की तरह एक्जिट पोल के नतीजे को खारिज नहीं किया, बल्कि अपनी विफलता स्वीकार करते हुए कहा कि उनकी पार्टी ठीक से चुनाव नहीं लड़ सकी। कुमारस्वामी ने कहा कि उनके पास संसाधन होते तो उनकी पार्टी कुछ और सीटें जीत सकती थी। उन्होंने दावा किया कि करीब 25 ऐसी सीटें थीं, जिन पर जेडीएस जीत सकती थी। अगर जेडीएस को नुकसान हुआ है तो उसका पहला लाभार्थी कांग्रेस हो सकती है। ध्यान रहे जेडीएस का आधार वोट वोक्कालिगा है और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार इसी समुदाय से आते हैं। सो, पहले से अंदाजा लगाया जा रहा था कि इस बार कुछ वोक्कालिगा वोट कांग्रेस की ओर जाएगा।
तीसरा संकेत यह है कि मतदान के दिन कुछ इलाकों में मतदाताओं ने भाजपा नेताओं की ओर से दिए गए ‘उपहार’ उनके घरों के आगे फेंक आए। इस तरह की घटना मुख्य रूप से बीएस येदियुरप्पा के इलाके में हुई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एससी समुदाय के लोगों ने कथित तौर पर भाजपा की ओर से दिए ‘उपहार’, जिसमें साड़ी और चिकेन शामिल था वह भाजपा नेताओं के घर के आगे जाकर फेंक दिया। यह स्पष्ट रूप से मतदाताओं की नाराजगी का संकेत है, जिसका अंदाजा भाजपा नेताओं को भी है।