इन दिनों नरेंद्र मोदी की सरकार के दो विदेश मंत्रियों की कहानी चर्चा में है। एक कहानी अमेरिका के विदेश मंत्री रहे माइक पोम्पियो ने कही है और दूसरी कहानी खुद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कही है। ऐसा लग रहा है कि इन दोनों मंत्रियों की कहानी नरेंद्र मोदी की दोनों सरकारों के हर मंत्री की कहानी है। पोम्पियो ने अपनी किताब में लिखा है कि उन्होंने अपने समकक्ष यानी उस समय की भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को कभी भी बहुत महत्वपूर्ण राजनीतिक हस्ती नहीं माना। इसकी बजाय उन्होंने तब के विदेश सचिव एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल का जिक्र किया है और डोवाल के बारे में लिखा है कि वे प्रधानमंत्री मोदी के काफी करीबी और भरोसे के व्यक्ति हैं। यानी सुषमा स्वराज जैसी बड़ी नेता के मुकाबले दो अधिकारी विदेश मामलों में ज्यादा प्रभावी थे।
इस खुलासे के कुछ दिन बाद ही जयशंकर ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे विदेश मंत्री बनेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि अगर नरेंद्र मोदी की जगह कोई दूसरा प्रधानमंत्री होता तो उनको कभी केंद्रीय मंत्री नहीं बनाता। क्या सुषमा स्वराज के बार में लिखी पोम्पियो की बात और जयशंकर की अपने बारे में कही गई बात मोदी सरकार के अनेक या लगभग सभी मंत्रियों के बारे में सही नहीं है? आज भी ज्यादातर मंत्री कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक हस्ती नहीं हैं। उनके मुकाबले उनके सचिव और दूसरे अधिकारी ज्यादा कारगर तरीके से काम कर रहे हैं। इसी तरह ज्यादातर मंत्री भी ऐसे हैं, जिनको किसी और प्रधानमंत्री की सरकार में जगह नहीं मिलती। वे नरेंद्र मोदी की सरकार में सिर्फ इसलिए मंत्री है क्योंकि वे निराकार हैं और कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है।