कर्नाटक के चुनाव नतीजों के बाद के घटनाक्रम से राज्य की राजनीति कई तरह से बदलती दिख रही है। ऐसा लग रहा है कि राज्य की राजनीतिक का पूरा पारंपरिक समीकरण बदल जाएगा। पारंपरिक रूप से कर्नाटक में भाजपा लिंगायत आधार वोट वाली पार्टी है तो कांग्रेस ओबीसी और मुस्लिम आधार वाली पार्टी है, जबकि जेडीएस को वोक्कालिगा का बिना शर्त समर्थन रहा है। इस बार वोक्कालिगा वोट जेडीएस से टूट कर कांग्रेस के साथ गया है क्योंकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। लेकिन चुनाव नतीजों के बाद शिवकुमार सिद्धगंगा के बड़े लिंगायत मठ में गए। बताया जा रहा है कि वे राज्य की नई बनने वाली सरकार में लिंगायत वर्चस्व बढ़वाना चाहते हैं ताकि इस वोट पर भाजपा की पकड़ कमजोर की जा सके। वे आगे की राजनीति को ध्यान में रख कर ऐसा कर रहे हैं। बीएस येदियुरप्पा के चुनावी राजनीति से संन्यास के बाद उनको लग रहा है कि लिंगायत वोट बिखर सकता है।
ध्यान रहे इस बार येदियुरप्पा पहले की तरह सक्रिय प्रचार नहीं कर रहे थे और उनको मुख्यमंत्री पद से भी हटाया गया था तो भाजपा को लिंगायत वोट का बड़ा नुकसान हुआ। सबसे हैरान करने वाला आंकड़ा यह है कि कांग्रेस ने 46 लिंगायत उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 37 जीत गए हैं। शिवकुमार चाहते हैं कि इस समुदाय के ज्यादा मंत्री बनाए जाएं। तभी कहा जा रहा है कि भाजपा छोड़ कर कांग्रेस से जीते पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को बड़ा पद मिल सकता है। इस कार्ड से वे सिद्धरमैया को भी शह दे सकते हैं। सिद्धरमैया की ताकत ओबीसी वोट है, जिसके दम पर वे कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं। उनका कद तभी कम होगा, जब दूसरे समुदाय के वोट कांग्रेस से जुड़ते दिखेंगे। ध्यान रहे इस बार बड़ी संख्या में भाजपा के लिंगायत उम्मीदवार हारे हैं। शिवकुमार की इस राजनीति को देख कर भी लग रहा है कि भाजपा येदियुरप्पा की शरण में लौट सकती है।