कांग्रेस नेता राहुल गांधी भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी राजनीतिक लड़ाई को वैचारिक लड़ाई बनाने की कोशिश में बरसों से लगे हैं। इसके लिए वे बात बेबात सावरकर का मुद्दा लाते रहते हैं। यह बात शिव सेना को नागवार गुजरती है। यह बात नागवार तो एनसीपी को भी गुजरती है लेकिन वह चूंकि हिंदुत्व की राजनीति नहीं करती है इसलिए उसकी ओर से कम विरोध किया जाता है। शिव सेना की मुश्किल यह है कि उसे हर हाल में महाविकास अघाड़ी को बचाए रखना है लेकिन वह विनायक दामोदर सावरकर का अपमान भी बरदाश्त नहीं कर सकती है क्योंकि उसे वोट खराब होता है।
तभी जब राहुल गांधी ने अपनी दो साल की सजा के बाद कहा कि वे सावरकर नहीं, गांधी है और गांधी माफी नहीं मांगते तो शिव सेना ने इसका तीखा विरोध किया। उद्धव ठाकरे ने गठबंधन तोड़ लेने की धमकी दी। लेकिन सबको पता है कि शिव सेना गठबंधन तोड़ना अफोर्ड नहीं कर सकती है। इसलिए एक तरफ उद्धव ने कांग्रेस को चेतावनी दी तो दूसरी ओर संजय राउत को डैमेज कंट्रोल में लगाया। बताया जा रहा है कि शिव सेना के शीर्ष नेतृत्व की ओर से एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से बात की गई और उनसे भी कहा गया है कि वे सोनिया और राहुल गांधी से बात करें कि वे सावरकर पर बयानबाजी बंद करें।
जानकार सूत्रों के मुताबिक शिव सेना के जोर देने पर शरद पवार ने कांग्रेस नेताओं से बात की और इस बात के लिए तैयार किया कि राहुल गांधी सावरकर पर नरम रुख रखें। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर से विपक्षी पार्टियों को दिए गए रात्रिभोज में पवार ने इस मुद्दे पर सोनिया और राहुल गांधी से चर्चा की। शिव सेना ने इस रात्रिभोज का बहिष्कार किया था। लेकिन पवार के बाद करने के अगले ही दिन शिव सेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत कांग्रेस नेताओं से मिले। बताया जा रहा है कि उन्होंने सोनिया और राहुल गांधी दोनों से बात की और सब कुछ ठीक होने का संकेत दिया।
असल में शिव सेना के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं है कि। अगर वह महाविकास अघाडी से अलग होती है तो उसकी स्थिति कमजोर होगी। सांसदों, विधायकों की संख्या के लिहाज से शिव सेना पहले ही काफी कमजोर हो गई है और एकनाथ शिंदे जितने दिन तक मुख्यमंत्री रहेंगे संगठन के लिहाज से भी उनका गुट उतना ही मजबूत होगा। उद्धव ठाकरे की मजबूरी यह भी है कि भाजपा में जाने का रास्ता कम से कम अभी बंद है और वे प्रकाश अंबेडकर की पार्टी के साथ मिल कर तीसरा मोर्चा बना भी लें तो वह बहुत कमजोर होगा। तभी सावरकर मसले पर कांग्रेस और राहुल गांधी से नाराजगी के बावजूद कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन में बने रहने की मजबूरी है। इसलिए शिव सेना ने अपनी तरफ से भागदौड़ की, पवार को लगाया और किसी तरह से कांग्रेस को समझाया कि वह उसकी संवेदनशीलता का ख्याल रखे।