ऐसा लग रहा है कि जिस तरह से भाजपा को कर्नाटक में सफल राजनीति करने के लिए बीएस येदियुरप्पा की जरूरत है उसी तरह राजस्थान में सफलता के लिए वसुंधरा राजे की जरूरत है। राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले वसुंधरा इकलौती नेता दिख रही हैं, जो भाजपा के ज्यादातर नेताओं को साथ लेकर कांग्रेस को चुनौती देने की स्थिति में हैं। हालांकि कुछ दिन पहले तक प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया से लेकर दूसरे कई नेता कहते रहे थे कि भाजपा कोई चेहरा पेश किए बगैर चुनाव लड़ेगी या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ेगी लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। वसुंधरा के विरोधी माने जाने वाले गुलाब चंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद स्थिति बदली है।
कटारिया की राज्य की राजनीति से विदाई के बाद वसुंधरा ने चार मार्च को सालासर में अपनी ताकत दिखाई। उनका जन्मदिन वैसे तो आठ मार्च को है लेकिन उस दिन होली होने की वजह से वसुंधरा ने चार दिन पहले अपने जन्मदिन का कार्यक्रम रखा और एक बड़ी रैली की। इसमें राजस्थान भाजपा के लगभग आधे यानी एक दर्जन सांसद और 50 से ज्यादा विधायक शामिल हुए। पार्टी के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह भी पहुंचे। पार्टी के प्रभारी और इतनी बड़ी संख्या में विधायकों, सांसदों के पहुंचने का मतलब है कि पार्टी आलाकमान की ओर से हरी झंडी मिल गई है। भाजपा आलाकमान को समझ में आ गया है कि वसुंधरा के बगैर राजस्थान की राजनीति नहीं चलने वाली है। भाजपा की यह खासियत है कि वह जरूरत के हिसाब से सिद्धांत भी बदल लेती है और नेता भी। कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की विदाई कराने के बाद एक बार फिर पार्टी उनकी कमान में लड़ रही है। उसी तरह साढ़े चार साल तक वसुंधरा का हाशिए में डालने की कोशिशों के बाद पार्टी अब उनको चेहरा बनाती दिख रही है।