लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता बहाल करने के लोकसभा सचिवालय के फैसले का फायदा राहुल गांधी को होगा। इसका मतलब है कि हाई कोर्ट से राहत मिलते ही यानी सूरत की अदालत के दो साल की सजा के फैसले पर रोक लगते ही राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाल हो जाएगी। इसके बाद उनको बंगला खाली करने की जरूरत भी नहीं रह जाएगी। असल में फैजल का मामला एक नजीर बना है। इससे पहले किसी विधायक या सांसद की सदस्यता समाप्त किए जाने के बाद उसे बहाल नहीं किया गया था। जुलाई 2013के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पहला शिकार हुए रशीद मसूद से लेकर लालू प्रसाद और जयललिता व आजम खान तक किसी की सदस्यता बहाल नहीं हुई। लेकिन मोहम्मद फैजल ने अपनी सदस्यता बहाल करा ली।
फैजल को 2009 में हत्या के प्रयास से जुड़े एक मामले में सजा सुनाई गई थी, जिस पर केरल हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बावजूद उनकी सदस्यता खत्म हो गई, उनकी सीट खाली घोषित कर दी गई और चुनाव आयोग ने उस पर उपचुनाव की घोषणा भी कर दी। बाद में फैजल सुप्रीम कोर्ट गए तो सर्वोच्च अदालत ने चुनाव की घोषणा पर रोक लगा दी। उन्होंने फिर सदस्यता बहाल कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया तो सुनवाई से पहले ही लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता बहाल कर दी।
फैजल के मामले से जो नजीर बनी है उसके पहले लाभार्थी राहुल गांधी होंगे। यह बुधवार को चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस से भी जाहिर हो गया। लोकसभा सचिवालय की ओर से वायनाड सीट खाली घोषित किए जाने के बावजूद चुनाव आयोग ने उपचुनाव की घोषणा नहीं की, बल्कि कहा कि वह इंतजार करेगी। इसका मतलब है कि अगर राहुल की सजा पर रोक लग जाती है तो उपचुनाव की नौबत नहीं आएगी। उनकी सदस्यता बहाल हो जाएगी और बंगला भी बच जाएगा। वैसे भी फैजल का मामला हत्या के प्रयास का है, जबकि राहुल का मामला मानहानि का है, जिसमें राहत की गुंजाइश हमेशा रहती है।