वैसे तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी के सभी विपक्षी नेताओं के साथ अच्छे ताल्लुक हैं। संसद में विपक्षी नेताओं के साथ उनका अच्छा तालमेल दिखता है। लेकिन राहुल राजनीतिक मसलों पर विपक्षी नेताओं के साथ वन टू वन बात नहीं करते हैं। कोई मसला सामने आने पर बातचीत होती है लेकिन वह अपवाद की बात है। जिस तरह से अरविंद केजरीवाल सभी विपक्षी नेताओं के साथ सीधे बात करते हैं और उनके साथ राजनीतिक खिचड़ी पकाते हैं वैसा राहुल गांधी नहीं करते हैं। एक समय था जब उन्होंने इसकी शुरुआत की थी। वे युवा नेताओं से मिलते थे। राजद के नेता तेजस्वी यादव के साथ दिल्ली के खान मार्केट में दिन का भोजन करते उनको फोटो खूब वायरल हुई थी। लेकिन अब यह सब कुछ बंद है।
राजनीतिक मामलों में कांग्रेस के अलग थलग होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि नेहरू गांधी परिवार का कोई भी सदस्य सहज रूप से विपक्ष के बड़े नेताओं से नहीं मिलता है। सोनिया गांधी की सेहत ठीक नहीं है। राहुल भारत जोड़ो यात्रा के बाद सर्वोच्च नेता होने के मुगालते में हैं तो प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस के अंदर अपनी गोटियां फिट करने से फुरसत नहीं है। ऊपर से अब कांग्रेस के पास अहमद पटेल भी नहीं हैं। कांग्रेस के जो बड़े नेता सहज तरीके से विपक्ष के साथ संवाद कर सकते उनमें कमलनाथ और अशोक गहलोत हैं लेकिन ये दोनों अपने अपने राज्य की राजनीति में बिजी हैं। इनके अलावा इकलौते नेता दिग्विजय सिंह हैं, जिनका सभी पार्टियों के नेताओं से अच्छा संबंध है और नेता उनका सम्मान भी करते हैं। लेकिन पता नहीं है क्योंकि वे भी मध्य प्रदेश की राजनीति से बाहर नहीं देख रहे हैं। तभी राहुल गांधी को पहल करनी चाहिए और सभी नेताओं के साथ वन टू वन संपर्क में रहना चाहिए।