गैर भाजपा दलों के शासन वाले जिन राज्यों में राज्यपालों से सरकार का टकराव चल रहा था उनमें से कई राज्यों में राज्यपाल बदल गए हैं। हालांकि तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में राज्यपाल नहीं बदले हैं, जहां राज्य सरकार और राजभवन में सर्वाधिक टकराव है। लेकिन बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ में राज्यपालों के बदले जाने का भी बड़ा संकेत है। महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार है लेकिन वहां भी राज्यपाल बदले जाने का जश्न मनाया जा रहा है क्योंकि भाजपा और एकनाथ शिंदे गुट की सरकार के साथ साथ दोनों पार्टियों के नेता राज्यपाल के विवादित बयानों से चिंता में थे और उनको लग रहा था कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी दोनों पार्टियों को बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं।
विपक्षी शासन वाले राज्यों में सत्तारूढ़ दल के नेताओं को उम्मीद है कि नए राज्यपाल से उनको राहत मिलेगी। झारखंड के एक नेता ने कहा कि जिस तरह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार को राहत मिली है वैसी राहत मिल जाए तो काम आसान हो जाएगा। गौरतलब है कि जगदीप धनखड़ जब तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तब तक ममता बनर्जी सरकार को बड़ी मुश्किल हुई। राजभवन से लगातार सरकार को कठघरे में खड़ा किया। लेकिन जब से सीवी आनंदा बोस राज्यपाल होकर गए हैं तब से पश्चिम बंगाल में शांति है। क्या ऐसी शांति झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों रहेगी?
बिहार में राज्यपाल फागू चौहान और बिहार सरकार के बीच कई मुद्दों पर बड़ा टकराव रहा। खास कर विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर। आरोप लगे थे कि राज्यपाल पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों को लाकर भर रहे हैं। बाद में राज्य सरकार ने कुलपतियों की नियुक्ति के नियम बदले। नए बनने वाले विश्वविद्यालयों के लिए ऐसे नियम बनाए गए, जिनसे कुलपतियों की नियुक्ति में राजभवन की भूमिका समाप्त हो गई।
छत्तीसगढ़ और झारखंड में एक जैसा विवाद है। दोनों राज्यों में विधानसभा से पास किए गए विधेयक मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास लंबित हैं। छत्तीसगढ़ में तो मामला अदालत में पहुंच गया। राज्य सरकार ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने का बिल पास किया है। राज्य में आरक्षण की सीमा बढ़ा कर 76 फीसदी की गई है। इसका बिल राज्यपाल के पास लंबित है। दिसंबर में मंजूरी के लिए भेजे गए बिल पर राज्यपाल की स्वीकृति नहीं मिलने पर सरकार हाई कोर्ट में गई है, जहां राजभवन की ओर से कहा गया है कि किसी भी मामले में राष्ट्रपति और राज्यपाल को अदालत में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में इस साल चुनाव हैं इसलिए राज्य सरकार जल्दी से जल्दी बढ़ा हुआ आरक्षण लागू करना चाहती है। इसी तरह का मामला झारखंड में भी है। वहां भी स्थानीयता कानून विधानसभा से पास हुआ है, जिसमें 1932 के खतियान वालों को मूलवासी मानने का प्रावधान है पर राज्यपाल ने बिल नहीं मंजूर किया। यहां तक वित्त विधेयक भी वापस लौटा दिया। दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ दल उम्मीद कर रहे हैं कि नए राज्यपाल के आने से शायद स्थिति सुधरे।