बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्षी पार्टियों को एक करने का जो अभियान शुरू किया है वह कांग्रेस के समर्थन से किया है। उन्होंने अपना अभियान कांग्रेस के दरवाजे से शुरू किया है। वे अप्रैल में सबसे पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिले थे। उस समय उन्होंने जातीय जनगणना और सामाजिक न्याय के एजेंडे को आगे करके जाति जनगणना और विपक्षी पार्टियों की एकजुटता के बारे में बात की थी। उन्होंने कांग्रेस के सामने यह बड़ा वादा किया था कि वे बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस दोनों से बात करेंगे। लेकिन सबको पता है कि इसका क्या नतीजा निकलना है। वे नवीन पटनायक से मिले भी लेकिन उसके दो दिन बाद ही पटनायक ने दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी।
बहरहाल, सवाल है कि नीतीश को कांग्रेस की जरूरत क्यों है? इसका कारण यह है कि कांग्रेस ही उनको विपक्षी गठबंधन का समन्वयक या संयोजक बनवा सकती है। बाकी कई पार्टियों के नेता तो खुद ही दावेदार हैं तो वे क्यों नीतीश को नेता बनवाएंगे! ध्यान रहे 2015 में भी जब नीतीश पहली बार कांग्रेस और राजद के गठबंधन में आए थे तब भी कांग्रेस ने उनको नेता बनवाया था। कांग्रेस के नेता मानते हैं कि नीतीश के चेहरे की वजह से बिहार में गठबंधन को गैर यादव अन्य पिछड़ी जातियों खास कर अति पिछड़ी जातियों का समर्थन मिलता है। बिहार से बाहर भी नीतीश की छवि साफ सुथरी, पढ़े-लिखे और विनम्र नेता की है। नीतीश को भी अंदाजा है कि अगर कोई चेहरा आगे करना होगा तो कांग्रेस उनको पसंद कर सकती है। इसलिए वे कांग्रेस की सुविधा का सबसे ज्यादा ख्याल रख रहे हैं।