उत्तर प्रदेश में पुलिस इनकाउंटर का पिछले कुछ दिनों में रिकॉर्ड बना है। लेकिन अब लग रहा है कि वहां अपराधियों को निपटाने का एक नया मॉडल उभर रहा है। अब बड़े गैंगेस्टर और माफिया को पुलिस नहीं मार रही है, बल्कि पुलिस के सामने कोई दूसरा गिरोह या कोई दूसरा अपराधी या विजिलांते समूह का कोई व्यक्ति उनको मार दे रहा है। हैरानी की बात है कि अपराधियों की हत्या करने वाले कभी पत्रकार बन कर पहुंच रहे हैं तो कभी वकील बन कर। कुछ दिन पहले ही प्रयागराज में एक अस्पताल परिसर में कोई डेढ़ दर्जन पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में पत्रकार बन कर पहुंचे तीन लोगों ने अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या कर दी थी। पूरे घटनाक्रम में अपराधी गोलियां बरसाते रहे और पुलिस तमाशा देखती रही। बाद में पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया।
ठीक इसी तरह की घटना बुधवार को लखनऊ में हुई, जहां एक व्यक्ति वकील बन कर अदालत में पहुंचा और उसने मुख्तार अंसारी गैंग से जुड़े रहे संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की गोली मार कर हत्या कर दी। इस मामले में भी पुलिस तमाशबीन बनी रही और बाद में उसने गोली मारने विजय यादव नाम के व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया। इस घटनाक्रम में एक साल की एक बच्ची और दो पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। चाहे अतीक अहमद की हत्या हो या संजीव माहेश्वरी की दोनों मामलों में एक खास ट्रेंड यह देखने को मिला कि इसे जंगलराज बताने की बजाय यह कह कर इसका जश्न मनाया जा रहा है कि अपराधियों का खात्मा हो रहा है। भाजपा के विधायक ट्विट करके इस घटना की तारीफ कर रहे हैं। कायदे से यह तारीफ की नहीं, बल्कि कानून व्यवस्था के कमजोर होने की निशानी है।