बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विपक्षी एकता बनाने की कोशिश की असली परीक्षा ओड़िशा में होने वाली है। वे ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मिलने वाले हैं। शुक्रवार को दोनों की मुलाकात हो सकती है। अब तक नीतीश को हर विपक्षी नेता के साथ मुलाकात में कामयाबी मिली है। वे दिल्ली में मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को आरक्षण बढ़ाने और जातीय जनगणना के विचार पर सहमत करने में कामयाब हुए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कहा कि वे नीतीश के प्रयास के साथ हैं। दोनों वामपंथी पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने भी उनसे सहमति जताई। इसके बाद वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मिले और उसी दिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से भी मिले। उन दोनों नेताओं ने भी कहा कि वे नीतीश के प्रयास के साथ हैं।
पहली बार वे किसी ऐसे नेता से मिलने जा रहे हैं, जो भाजपा विरोधी नहीं है, बल्कि भाजपा को मुद्दा आधारित समर्थन देता रहा है। नवीन पटनायक वैसे को कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रख कर काम करने का दावा करते हैं लेकिन असल में वे भाजपा का समर्थन करते हैं। कई विधेयकों पर उन्होंने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन किया है और स्पीकर से लेकर राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति चुनाव में हर बार भाजपा उम्मीदवार को समर्थन दिया है। राज्य में कांग्रेस को हटा कर भाजपा उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी बन गई है इसके बावजूद उनका झुकाव भाजपा की ओर है। सो, उनको भाजपा के खिलाफ बनने वाले किसी मोर्चे में शामिल करने के लिए तैयार करना मुश्किल काम है। यह सही है कि नवीन और नीतीश दोनों अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री रहे हैं और साथ काम कर चुके हैं। नीतीश की राजनीति नवीन के पिता बीजू पटनायक के साथ रही है और दोनों समान विचारधारा के हैं। इस आधार पर अगर नीतीश उनको तटस्थ रहने के लिए भी तैयार कर लेते हैं तो बड़ी बात होगी।