जिन राजनीतिक नारों ने मायावती को बहुजन समाज का नेता बनाया अब वे उन नारों पर सफाई दे रही हैं। वे कह रही हैं ये नारे बसपा ने कभी दिए ही नहीं थे, बल्कि समाजवादी पार्टी ने बसपा को बदनाम करने के लिए इन नारों का प्रचार किया था। अगर ऐसा है तो मायावती ने या मान्यवर कांशारीम ने उस समय इन नारों का विरोध क्यों नहीं किया था? बसपा के कार्यकर्ताओं को इस तरह के नारे लगाने से रोका क्यों नहीं गया था? जाहिर है उस समय इन नारों से फायदा दिख रहा था इसलिए इन्हें अपनाया गया और अब जबकि मायावती ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को पूरी तरह से बदल दिया है तो वे इन नारों से पीछा छुड़ा रही हैं।
उन्होंने बुधवार को तीन ट्विट किए, जिसमें नब्बे के दशक में चर्चित हुए नारों का विरोध किया और कहा कि ये नारे सपा ने गढ़े थे, बसपा को बदनाम करने के लिए। जब मुलायम सिंह और कांशीराम ने सपा और बसपा के बीच तालमेल किया था और 1993 का चुनाव लड़ा था तब एक नारा चर्चित हुआ था ‘मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम’। इसका जिक्र करते हुए मायावती ने ट्विट किया कि वास्तवमें यूपी के विकास व जनहित की बजाय जातिद्वेष एवं अनर्गल मुद्दों की राजनीति करना सपा का स्वभाव रहा है।
इसके बाद अगले ट्विट में उन्होंने लिखा ‘मान्यवार कांशीराम जी ने मिशनरी भावना के तहत गठबंधन बनाया था लेकिन मुलायम सिंह यादव के गठबंधन का सीएम बनने के बावजूद उनकी नीयत पाक साफ न होकर बसपा को बदनाम करने व दलित उत्पीड़न जारी रखने की रही’। उनका तीसरा ट्विट था, ‘इसी क्रम में अयोध्या, श्रीराम मंदिर व अपरकास्ट समाज आदि से संबंधित जिन नारों को प्रचारित किया गया था वे बीएसपी को बदनाम करने की सपा की शरारत व सोची समझी साजिश थी। अंतः सपा की ऐसी हरकतों से खासकर दलित, अन्य पिछड़ों व मुस्लिम समाज को सावधान रहने की सख्त जरूरत’।
नब्बे के दशक में उच्च जातियों को लेकर बसपा एक नारा चर्चित रहा था- तिलक, तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार। अब मायावती कह रही हैं कि अपरकास्ट को लेकर नारे भी सपा ने लिखे थे। बहरहाल, मायावती ने जिस अंदाज में एक के बाद एक तीन ट्विट करके धर्म और ऊंची जाति वालों के लिए बनाए गए नारों से पीछा छुड़ाया है उससे लग रहा है कि वे अब पूरी तरह से भाजपा की लाइन पर राजनीति कर रही हैं। हालांकि यह कहना मुश्किल है कि वे इस लाइन पर राजनीति करके अपनी पार्टी के लिए सफलता की उम्मीद कर रही हैं या भाजपा के कहने पर ऐसा कर रही हैं। दोनों बातें हो सकती हैं। भाजपा के लिए अभी जरूरी हो गया है कि वह समाजवादी पार्टी को हिंदू विरोधी साबित करे। सपा के नेता रामचरितमानस पर बेसिरपैर के बयान देकर खुद ही यह काम कर रहे हैं। अब मायावती ने भी भाजपा की तर्ज पर सपा को निशाना बनाया है। इससे उनका बचा खुची मुस्लिम वोट भी हाथ से निकलेगा। दलित वोट टूट ही रहा है। सवर्ण वोट कितना मिलेगा यह कहा नहीं जा सकता।