शरद पवार के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद से इसको लेकर कई तरह के निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। ज्यादातर विश्लेषक मान रहे हैं कि यह उनका मास्टरस्ट्रोक है और वे पहले से बड़े नेता हो गए हैं। यह निष्कर्ष तभी सही साबित होगा, जब पार्टी पर उनकी पूरी पकड़ बने। अगर वे कार्यकर्ताओं के दबाव में इस्तीफा वापस लेकर अध्यक्ष बने रहते हैं और अपने हिसाब से टीम बनाते हैं या अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी का अध्यक्ष बनवा देते हैं और पार्टी में कोई टूट-फूट नहीं होती है तभी माना जाएगा कि उनकी पूरी पकड़ है। अजित पवार के साथ किसी मसले पर समझौता करना पड़ा तो उससे शरद पवार की ताकत घटेगी।
इसका असर राज्य की राजनीति में भी दिखेगा और राष्ट्रीय राजनीति में भी, जहां वे पहले ही भूमिका काफी हद तक गंवा चुके हैं। वहां जो भी थोड़ी बहुत भूमिका है वह तभी बचेगी, जब पार्टी उनके हाथ में रहेगी और उनकी ताकत कायम रहेगी। यह तभी होगा, जब वे अध्यक्ष रहें या उनकी बेटी अध्यक्ष बनें। देश की दूसरी विपक्षी और एनसीपी की सहयोगी पार्टियों को अजित पवार पर भरोसा नहीं है। उनको लगता है कि वे कभी भी भाजपा के साथ जा सकते हैं। पिछले दिनों उनके भाजपा के संपर्क में होने की कई खबरें सामने आई थीं। तभी इस्तीफे के तुरंत बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सुप्रिया सुले को फोन किया था और इस्तीफे का कारण जानना चाहा था। इसके साथ ही राहुल और स्टालिन ने सुप्रिया को कहा था कि वे शरद पवार को इस्तीफा वापस लेने के लिए तैयार करें। यह विपक्षी एकता के लिए जरूरी है।