राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

भाजपा को क्या पवार से है भरोसा?

अपनी पार्टी और परिवार का झगड़ा काफी हद तक निपटाने के बाद एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने भाजपा को भरोसा दिलाया है कि उसकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। यह हैरानी की बात है कि राज्य के विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी के सबसे बड़े नेता शरद पवार अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी को भरोसा दिला रहे हैं! सवाल है कि क्या वे अब भाजपा के साथ टकराव टालने और शांति बहाली का प्रयास कर रहे हैं? पवार इस तरह के काम कई बार कर चुके हैं। वे एक तरफ भाजपा पर चोट करते हैं, घाव देते हैं और उसके बाद मरहम लेकर पहुंच जाते हैं। वही काम वे इस बार भी कर रहे हैं।

पार्टी अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा वापस लेने के एक दिन बाद उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी के 15 अन्य विधायकों के खिलाफ आता है तब भी भाजपा की सरकार की स्थिरता को कोई खतरा नहीं होगा। इसमें कोई नई बात नहीं है। आंकड़ों के हिसाब से यह एक तथ्य है। ध्यान रहे राज्य सरकार के पास 162 विधायकों का बहुमत है। अगर 16 विधायकों की सदस्यता समाप्त भी हो जाती है तब भी सरकार के पास 146 विधायकों का बहुमत होगा, जबकि विधानसभा की क्षमता 288 से घट कर 272 रह जाएगी, जिसमें बहुमत का आंकड़ा 137 का होगा। सो, सबको पता है कि भाजपा की सरकार अस्थिर नहीं होगी।

इसके बावजूद भाजपा वैकल्पिक व्यवस्था में लगी थी और कई लोगों को लग रहा है कि अगर शिंदे और उनके विधायकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो शिंदे खेमे में भगदड़ मचेगी और दूसरे कई विधायक पार्टी छोड़ कर उद्धव ठाकरे के साथ लौटने की सोच सकते हैं। सांसदों में भी ऐसा ही होगा। इसलिए भाजपा ने एनसीपी नेता अजित पवार को साथ लेने की पहल की थी। कहा जा रहा था अजित पवार एनसीपी के 40 विधायकों को साथ लेकर भाजपा के साथ जाएंगे और उसकी सरकार को समर्थन देंगे।

शरद पवार ने अपने इस्तीफे के ड्रामे से यह घटनाक्रम टाल दिया है। अब एनसीपी के टूटने के आसार कम हैं और अजित पवार का खेल भी सार्वजनिक हो गया है। पवार को अंदाजा होगा कि इससे भाजपा में नाराजगी होगी। तभी उन्होंने आगे बढ़ कर भरोसा दिलाया है कि उसकी सरकार की स्थिरता को खतरा नहीं होगा। सवाल है कि अगर स्थिरता को खतरा हुआ तो क्या पवार सरकार को बचाएंगे? क्या वे उद्धव ठाकरे को इस बात के लिए तैयार करेंगे कि वे शिंदे खेमा छोड़ कर आने की कोशिश कर रहे नेताओं को अपनी पार्टी में न लें? या सीधे 2014 की तरह भाजपा की सरकार को बाहर से समर्थन दे देंगे? ध्यान रहे भाजपा से करीबी की वजह से अजित  पवार को बदनाम किया जा रहा है लेकिन सबसे पहले 2014 में जब भाजपा को 125 सीटें मिली थीं और शिव सेना ने सरकार बनाने में साथ नहीं दिया था तब शरद पवार ने ही बाहर से सरकार को समर्थन दिया था।

By NI Political Desk

Get insights from the Nayaindia Political Desk, offering in-depth analysis, updates, and breaking news on Indian politics. From government policies to election coverage, we keep you informed on key political developments shaping the nation.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *