यह सही है कि अपने चाचा के साथ दांव-पेंच में अजित पवार को दो बार मुंह की खानी पड़ी है। पहली बार नवंबर 2019 में और दूसरी बार अप्रैल-मई 2023 में। लेकिन दोनों बार अजित पवार ने कुछ न कुछ फायदा जरूर उठा लिया है। तभी यह भी संदेह होता है कि कहीं खास रणनीति के तहत चाचा-भतीजे मिल कर तो नहीं खेल रहे हैं! बहरहाल, पिछले कुछ दिनों से अजित पवार भाजपा के संपर्क में थे। महाराष्ट्र की राजनीति में उनके बेस्ट फ्रेंड उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस थे। भाजपा के नेता उनके बारे में लगातार अच्छी बातें कह रहे थे। कहा जा रहा था कि वे एनसीपी के कुछ विधायकों को तोड़ कर भाजपा के साथ तालमेल करने जा रहे हैं।
उनका यह खेल शरद पवार ने खराब कर दिया लेकिन इस बीच महाराष्ट्र कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की जांच से अजित पवार को राहत मिल गई। ईडी ने इस मामले में अजित पवार और उनकी पत्नी का नाम नहीं शामिल किया। यह बड़ा मामला था, जिसमें नाम आने के बाद जीवन भर फंसे रहना होता। इसी तरह नवंबर 2019 में अजित पवार ने भाजपा को समर्थन दिया और देवेंद्र फड़नवीस के साथ उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली तब उनको सिंचाई घोटाले में राहत मिली थी। वे चार या पांच दिन भाजपा की सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे लेकिन एक बड़े घोटाले से उनको जीवन भर की राहत मिल गई। फड़नवीस और अजित पवार ने 23 नवंबर 2019 को शपथ ली थी और 27 नवंबर को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने सिंचाई घोटाले से जुड़े 17 मामलों में अजित पवार को क्लीन चिट दी। पवार जूनियर को 2018 में 70 हजार करोड़ रुपए के इस घोटाले में जिम्मेदार ठहराया गया था।