कांग्रेस पार्टी ने मध्य प्रदेश में कर्नाटक की तर्ज पर गारंटियां देनी शुरू की है। सरकार बनने पर खजाना खोलने का ऐलान किया है। पुरानी पेंशन योजना बहाल की जाएगी हालांकि कर्नाटक में इसकी घोषणा नहीं हुई थी। मुफ्त की बिजली, महिलाओं को नकदी, किसानों की कर्जमाफी, पांच सौ रुपए में रसोई गैस सिलिंडर आदि देने की घोषणा हो गई है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने जबलपुर में कांग्रेस के चुनाव अभियान का आगाज करते हुए कहा कि ये कांग्रेस का वादा है और कांग्रेस अपना वादा लागू करती है। उन्होंने राज्य के लोगों को अगले चार पांच महीने कांग्रेस की दूसरे राज्यों की सरकारों पर नजर रखने को भी कहा।
इस आधार पर कह सकते हैं कि कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में कर्नाटक मॉडल पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन मुफ्त की घोषणाओं के अलावा मध्य प्रदेश का चुनाव कर्नाटक से पूरी तरह से अलग मॉडल पर लड़ा जा रहा है। दोनों चुनावों का सबसे बुनियादी फर्क यह है कि कर्नाटक में कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर लड़ी थी, जबकि मध्य प्रदेश में हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ रही है। कर्नाटक में कांग्रेस पूरी तरह से भाजपा का कंट्रास्ट दिख रही थी, जबकि मध्य प्रदेश में वह भाजपा की फोटोकॉपी बन रही है। कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में खुल कर अपने को मुसलमानों के साथ दिखाया था और कहा था कि सरकार बनने पर वह मुसलमानों का चार फीसदी आरक्षण बहाल करेगी। इतना ही नहीं बजरंग दल पर पाबंदी लगाने का वादा भी किया था।
इसके उलट मध्य प्रदेश बजरंग सेना कांग्रेस का साथ दे रही है। पिछले दिनों बजरंग सेना के नेता कमलनाथ से मिले और उनको हनुमानजी की गदा भेंट की। कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंच से जय बजरंग बली के नारे लगा रहे थे और मध्य प्रदेश में कमलनाथ बजरंग बली के नारे लगा रहे हैं। जबलपुर में प्रियंका गांधी की सभा के लिए जो पंडाल बनाया गया था, उसके ऊपर एक विशाल गदा स्थापित की गई थी। प्रियंका ने दर्जनों पंडितों के मंत्रोच्चार के बीच मां नर्मदा की पूजा अर्चना की और उसके बाद जनसभा के लिए गईं।
दोनों राज्यों का एक फर्क यह भी है कि कर्नाटक में कांग्रेस अघोषित रूप से सिद्धरमैया के चेहरे पर लड़ रही थी, जो कि घोषित रूप से नास्तिक हैं। अपने पूरे चुनाव प्रचार में वे किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं गए। इसके उलट मध्य प्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ के चेहरे पर लड़ रही है, जो चुनाव से पहले मंदिर मंदिर घूम रहे हैं और अपने को शिवराज सिंह चौहान से ज्यादा आस्थावान हिंदू साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे मध्य प्रदेश में कांग्रेस जो कर रही है वह कोई नई चीज नहीं है। 2002 के गुजरात दंगों और वहां के विधानसभा चुनाव के एक साल बाद जब मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव हुआ था तब भी कई नेता नरम हिंदुत्व के रास्ते चल रहे थे। तब से लेकर आज तक कांग्रेस वही राजनीति करती और हारती आ रही है। 15 साल के बाद 2018 में वह जरूर जीती लेकिन भाजपा से उसको सिर्फ नौ सीटें ज्यादा मिली थीं और यही कारण था कि डेढ़ साल से कम समय में ही कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी थी।