कर्नाटक के चुनाव नतीजे कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रादेशिक क्षत्रपों के लिए शुभ संदेश लेकर आए हैं। कांग्रेस ने अपने दोनों प्रादेशिक क्षत्रपों- सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के ऊपर भरोसा किया और उनको चुनाव लड़ाने का जिम्मा सौंपा तो उसका नतीजा सबके सामने है। ये दोनों बड़े और मजबूत नेता हैं। इनका अपना जमीनी जनाधार है। ये दोनों कांग्रेस का चेहरा हैं। एक और चेहरा मल्लिकार्जुन खड़गे का भी है, जिन्होंने जी-जीन से कर्नाटक में प्रचार किया। सो, कांग्रेस के लिए यह सबक है कि वह बाकी प्रदेशों में भी आलाकमान को थोपने की बजाय प्रादेशिक क्षत्रपों पर भरोसा करे और उनको आगे करके चुनाव लड़े। हालांकि कर्नाटक में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने जम कर प्रचार किया लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि राज्यों के चुनाव में आलाकमान का रोल पूरक वाला होना चाहिए।
भाजपा के लिए भी यही सबक है। भाजपा ने अपने सबसे बड़े प्रादेशिक क्षत्रप बीएस येदियुरप्पा को किनारे किया और निराकार बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया। ऊपर से प्रचार की पूरी कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संभाली। इसका नतीजा यह हुआ कि भाजपा का चुनाव प्रचार राज्य की जनता से कनेक्ट ही नहीं हो सका। उसके राष्ट्रीय नेता राष्ट्रीय मुद्दों की बात करते रहे और कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दे उठा कर चुनाव जीत लिया। कर्नाटक ने यह साबित किया है कि हर चुनाव प्रधानमंत्री के चेहरे पर नहीं जीता जा सकता है। अगर भाजपा के पास कोई एक बड़ा प्रादेशिक चेहरा होता तो दो-तीन फीसदी अतिरिक्त वोट आते और उतने से नतीजे बदल जाते। सो, आगे के चुनाव में खास कर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के प्रादेशिक क्षत्रपों की पूछ बढ़ेगी। कम से कम राज्यों के चुनाव में भाजपा आलाकमान प्रादेशिक नेताओं को महत्व देगा।