कर्नाटक में दोनों बड़ी पार्टियां- कांग्रेस और भाजपा अपने लिए अवसर मान रहे हैं। भाजपा का कहना है कि अगर सारे नेता एक होकर लड़ें तो फिर भाजपा जीतेगी। दूसरी ओर कांग्रेस का भी यही कहना है कि कांग्रेस के सारे नेता एकजुट होकर लड़ें तो कांग्रेस आराम से जीतेगी। तभी दोनों पार्टियों की ओर से अभी एकमात्र प्रयास यह चल रहा है कि किसी तरह से प्रदेश के नेताओं में एकता बन जाए। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शनिवार को कर्नाटक के दौरे पर गए तो उन्होंने धारवाड़ में रोड शो किया, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा दोनों मौजूद रहें। शाह ने दोनों को साथ लेकर रोड शो किया और यह मैसेज दिया कि पार्टी एकजुट हो गई है। पार्टी के बड़े नेताओं के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर भी सहमति बन गई है।
दूसरी ओर कांग्रेस में इस बात की कोशिश हो रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच एकजुटता हो जाए। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जिस समय कर्नाटक से गुजरी उस समय उन्होंने दोनों को साथ रखा और दोनों के बीच सब कुछ ठीक होने का मैसेज दिया। लेकिन असल में सब कुछ ठीक नहीं है। दोनों इस बात का दबाव बना रहे हैं कि उनको मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया जाए। कांग्रेस को पता है कि सीएम दावेदार बनाने का बड़ा नुकसान होगा। क्योंकि अगर सिद्धरमैया को सीएम दावेदार बनाया तो पिछड़ी जातियों के वोट तो मिलेंगे लेकिन वोक्कालिगा वोट भाजपा और जेडीएस में चला जाएगा। अगर शिवकुमार बने तो वोक्कालिगा वोट मिलेगा लेकिन पिछड़ा वोट बिखरेगा। तभी अब कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को जिम्मा दिया गया है कि वे प्रदेश के दोनों बड़े नेताओं के मतभेद सुलझाएं और सुलह कराएं। प्रियंका एक रैली कर चुकी हैं और जल्दी ही फिर कर्नाटक जाने वाली हैं।