कर्नाटक में कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस तीनों पार्टियां एक दूसरे के कोर वोट में सेंधमारी की कोशिश कर रही हैं। कांग्रेस का प्रयास है कि वह किसी तरह से भाजपा के लिंगायत वोट में से कुछ हिस्सा हासिल कर ले तो भाजपा का प्रयास कांग्रेस के ओबीसी और दलित वोट में सेंध लगाने का है। कांग्रेस और भाजपा दोनों यह कोशिश भी कर रहे हैं कि वे जेडीएस के वोक्कालिगा वोट में से भी कुछ हासिल कर लें। इसी राजनीति के तहत तीनों पार्टियों के नेताओं की बयानबाजी हो रही है और टिकटों का बंटवारा हो रहा है।
कांग्रेस इस बार ज्यादा से ज्यादा लिंगायत उम्मीदवार उतार रही है। उसने राज्य की 224 विधानसभा सीटों में से 166 पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इनमें से 43 लिंगायत उम्मीदवार हैं। ध्यान रहे कांग्रेस ने 2018 के चुनाव में कुल 43 लिंगायत उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 17 ही जीत पाए थे। इस बार कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिंगायत उम्मीदवारों की संख्या 50 से ज्यादा होगी।
पिछली बार भाजपा ने 55 लिंगायत उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 40 जीते थे। असल में कांग्रेस को लग रहा है कि भाजपा के सबसे बड़े लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा पार्टी की राजनीति में किनारे हो गए हैं और उनके बेटे बीवाई विजयेंद्र को भी उम्मीद के मुताबिक तरजीह नहीं मिल रही है। इसलिए कुछ लिंगायत वोट टूट सकता है। दूसरी कांग्रेस ने डीके शिवकुमार के चेहरे पर कुछ वोक्कालिगा वोट तोड़ने की राजनीति भी की है। भाजपा के दिग्गज नेता भी जिस तरह से पुराने मैसुरू जिले में मेहनत कर रहे हैं उससे लग रहा है कि उनका निशाना भी वोक्कालिगा वोट है। भाजपा की राज्य सरकार ने लिंगायत के साथ साथ वोक्कालिगा का आरक्षण भी बढ़ाया है। सो, कर्नाटक में एक दूसरे के वोट में सेंध लगाने की दिलचस्प राजनीति हो रही है।