कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी की जीत के बाद जो सबसे पहला सवाल है वह ये है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? हो सकता है कि कांग्रेस आलाकमान ने तय कर रखा हो और कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उसी नाम पर मुहर लगे। लेकिन कम से कम अभी की स्थिति में दो प्रबल दावेदार दिख रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार। अगर कांग्रेस के जानकार सूत्रों की मानें तो ज्यादा संभावना इस बात की है कि सिद्धरमैया के नाम पर सहमति बने। वे मुख्यमंत्री बनें और डीके शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री बना कर महत्वपूर्ण विभाग सौंपे जाएं। यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद किसी समय शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
कांग्रेस आलाकमान को पता है कि सिद्धरमैया और शिवकुमार दोनों का महत्व है और चुनावी जीत में दोनों का बराबर योगदान है। सिद्धरमैया ओबीसी समुदाय से आते हैं, जिसका 36 फीसदी के करीब वोट है। यह भी हकीकत है कि किसी दूसरी पार्टी के पास चाहे वह भाजपा हो या जेडीएस उसके पास कोई बड़ा ओबीसी नेता नहीं है। भाजपा लिंगायत और जेडीएस वोक्कालिगा वोट की राजनीति करती रही है। सो, सिद्धरमैया की वजह से ओबीसी कांग्रेस के साथ जुड़ा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस हारी थी लेकिन उसका वोट दो फीसदी बढ़ा था और वह सिद्धरमैया की वजह से संभव हो पाया था। दूसरे, पांच साल तक सरकार चलाने के बाद भी उनके ऊपर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा। कांग्रेस को लग रहा है कि वे लोकसभा चुनाव में भी काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
शिवकुमार का महत्व यह है कि वे वोक्कालिगा हैं और इस बार कांग्रेस को जो बढ़त मिली है वह संभवतः वोक्कालिगा वोट से ही मिली है। अब तक यह वोट लगभग पूरी तरह से जेडीएस के साथ जाता था लेकिन शिवकुमार के सीएम बनने की संभावना की वजह से इसका कुछ हिस्सा कांग्रेस के साथ आया है। इसके अलावा कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन और संसाधनों का इंतजाम करने का जिम्मा भी शिवकुमार के ऊपर था। उन्होंने बहुत बेहतर ढंग के संसाधन जुटाए और चुनाव का प्रबंधन किया।
ध्यान रहे जेडीएस जैसी पार्टी के नेता एचडी कुमारस्वामी को कहना पड़ा कि उनके पास संसाधन नहीं थे अन्यथा वे 25 और सीटों पर अच्छे से चुनाव लड़ सकते थे। जाहिर है इस लिहाज से शिवकुमार की बड़ी उपयोगिता है। वे कांग्रेस के संकटमोचन हैं। संकट चाहे किसी भी प्रदेश का हो उसे सुलझाने के लिए पार्टी आलाकमान उनके ऊपर भरोसा करता है। कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि सिद्धरमैया के मुकाबले शिवकुमार की उम्र कम है और उनको आगे मौका मिल सकता है। हालांकि यह भी तय है कि शिवकुमार आसानी से दावा छोड़ेंगे नहीं।