भारत सरकार की ओर से लगातार दावा किया जा रहा है कि भारत आत्मनिर्भर बन रहा है और ईंधन के लिए बाहरी साधनों पर निर्भरता घटाने के प्रयास कर रहा है। इसके लिए घरेलू उत्पादन बढ़ाने से लेकर पेट्रोलियम उत्पादों में इथिनॉल मिलाने का प्रचार है तो इथेनॉल की नई नई फैक्टरियां लगाए जाने का अलग प्रचार है। इसके बावजूद हकीकत यह है कि भारत कच्चे तेल के मामले में बाहरी साधनों पर पहले से ज्यादा निर्भर हो गया है। भारत सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक पेट्रोलियम उत्पादों की जरूरत का 87 फीसदी बाहर से आयात हो रहा है। यह पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत की घरेलू जरूरतों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और उसी अनुपात में घरेलू उत्पादन में गिरावट आ रही है।
सोचें, कच्चे तेल का घरेलू उत्पादन बढ़ाने का प्रयास होना था तो उसमें गिरावट आई है। वैकल्पिक साधनों की तलाश होनी थी तो उसके मुकाबले पेट्रोलियम उत्पादों की खपत लगातार बढ़ रही है। इसका कुल जमा नतीजा यह है कि कच्चे तेल का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले साल अप्रैल से जनवरी की अवधि में भारत ने अपनी जरूरत का 87 फीसदी कच्चा तेल आयात किया है। एक साल पहले यह आयात 85.3 फीसदी था। एक साल के अंदर 1.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल, पीपीएसी ने बताया है कि 2020-21 में कच्चे तेल की कुल खपत में आयात का हिस्सा 84.4 था, जो 2021-22 में 85.7 फीसदी पहुंच गया और 2022-23 में 87 फीसदी से ऊपर रहने की संभावना है। पहले नौ महीने में ही कुल आयात 87 फीसद हो गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि घरेलू उपभोग बढ़ रहा है और घरेलू उत्पादन घट रहा है।