केंद्र सरकार खबरों को रोकने या उन्हें नियंत्रित करने के कितने जतन कर रही है। किसी न किसी तरह से वह कंट्रोल हाथ में लेने की कोशिश करती दिख रही है। फेक न्यूज की पड़ताल करने की जिम्मेदारी प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो यानी पीआईबी के दोनों के कानून का जो मसौदा तैयार हुआ वह किसी का एक प्रयास है। लेकिन वह इकलौता प्रयास नहीं है। पिछले दिनों सरकार ने अपने इमरजेंसी पावर का इस्तेमाल करके बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण रोक दिया। उसे किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर करने से रोका गया और उस डॉक्यूमेंट्री को का लिंक अगर ट्विट के जरिए शेयर किया गया था तो उस ट्विट को भी हटाने का निर्देश दिया गया। हालांकि इसके बावजूद डॉक्यूमेंट्री जगह जगह दिखाई जा रही है।
डॉक्यूमेंट्री वाले विवाद से पहले केंद्र सरकार ने जोशीमठ में पहाड़ धंसने और मकानों में दरार आने की घटनाओं पर सूचना साझा करने से रोक दिया था। सरकार ने इसरो को निर्देश दिया था कि वह सेटेलाइट का डाटा शेयर न करे। इसके बाद पीआईबी को फेक न्यूज की पड़ताल का जिम्मा देने का मामला आया है। इसमें कहा गया है कि अगर पीआईबी किसी न्यूज को फेक न्यूज के तौर पर फ्लैग कर दे तो न्यूज प्लेटफॉर्म से उसे हटाना होगा। इसके लिए सूचना प्रौद्योगिकी कानून को बदलने का मसौदा पेश किया गया है।
ध्यान रहे अब भी पीआईबी फेक न्यूज की जानकारी देता है लेकिन उसके बाद न्यूज हटाना अनिवार्य नहीं होता है। परंतु कानून बना तो सरकार को अधिकार होगा कि वह डिजिटल इंटरमीडियरी को आदेश दे कि खबर हटाई जाए। किसी सरकारी एजेंसी को इस तरह का अधिकार देने से मीडिया समूहों की आजादी प्रभावित हो सकती है। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट श्रेया सिंघल केस में कह चुका है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत लगाई गई पाबंदियों के अलावा वाक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है।