यह लाख टके का सवाल है कि 56 साल पहले बनी शिव सेना कब तक बची रहेगी? चुनाव आयोग ने शिव सेना को उसके संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के परिवार से छीन कर पार्टी के दूसरे नेता एकनाथ शिंदे को दे दिया है। चुनाव आयोग ने इतना बड़ा कदम सिर्फ इस आधार पर उठाया कि पार्टी में टूट हुई तो ज्यादातर विधायक और सांसद एकनाथ शिंदे के साथ चले गए थे। बाद में भाजपा ने शिंदे को समर्थन देकर उनको मुख्यमंत्री बनवा दिया। सो, शिंदे मुख्यमंत्री हैं और 2019 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव में जीते ज्यादातर सांसद और विधायक उनके साथ हैं, इसलिए चुनाव आयोग ने शिव सेना उनको सौंप दी।
शिव सेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे के पास कुछ नहीं बचा। न पार्टी बची और न उसका चुनाव चिन्ह बचा। सोचें, जो काम बाल ठाकरे के स्वाभाविक उत्तराधिकारी माने जा रहे उनके भतीजे राज ठाकरे नहीं कर पाए वह वह काम एकनाथ शिंदे ने कर दिया। शिंदे ऑटो चलाते थे और एक साधारण कार्यकर्ता के तौर पर पार्टी में शामिल हुए थे। अब वे 56 साल पुरानी इस पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं। लेकिन सवाल है कि पार्टी में कब तक उनकी सर्वोच्चता बची रहेगी और वे कब तक पार्टी को बचाए रख पाएंगे?
हकीकत यह है कि एकनाथ शिंदे के पास कोई ताकत नहीं है। उनकी सारी ताकत भारतीय जनता पार्टी है। वे भाजपा से मिल रही आभासी शक्तियों के दम पर राजनीति कर रहे हैं। भाजपा की ताकत और समर्थन से ही उनको शिव सेना का नाम और चुनाव चिन्ह मिल पाया है। भाजपा उनको यह ताकत दे सकती है लेकिन राजनीतिक ताकत भाजपा नहीं दे सकती है। ध्यान रहे हाल के दिनों तक भाजपा खुद ही शिव सेना की बी टीम की तरह राजनीति करती थी। इसलिए यह संभव नहीं है कि भाजपा अपने दम पर खुद को भी बड़ा बनाए और एकनाथ शिंदे को भी शिव सेना का स्वाभाविक नेता बनवा दे।
आमतौर पर क्षेत्रीय पार्टियों में नेतृत्व संस्थापक नेता के परिवार में रहता है। टीडीपी जरूर एनटी रामाराव के बेटे-पोतों के हाथ में नहीं है लेकिन उनके दामाद और नाती के हाथ में है। इन पार्टियों की सफलता का राज ही परिवार के खूंटे से बंधा होना होता है। इसलिए बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे ही रहेंगे और यह अगले चुनाव में प्रमाणित हो जाएगा। उसके बाद क्या होगा? क्य एकनाथ शिंदे शिव सेना को बचाए रख पाएंगे? जानकार सूत्रों के मुताबिक भाजपा का मकसद शिव सेना को समाप्त करना है और वह तभी हो पाएगा, जब शिंदे पार्टी का विलय भाजपा में कर दें। भाजपा जब तक ताकतवर है वह किसी हाल में शिंदे गुट और उद्धव गुट को एक नहीं होने देगी। ऐसे में या तो शिव सेना बिना किसी ताकत के ऐसे ही एक पार्टी बनी रहेगी, जैसे बरसों तक जनता पार्टी बनी रही थी या फिर उसका विलय भाजपा में होगा। और भाजपा के बरक्स महाराष्ट्र की राजनीति में हिंदुत्व की दूसरी ताकत शिव सेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे बनी रहेगी।