कांग्रेस पार्टी विपक्षी गठबंधन बनाने के लिए तैयार है लेकिन वह अपने हितों से समझौते के लिए तैयार नहीं है। वह कुछ राज्यों में अपने हिसाब से राजनीति कर रही है और वहां के क्षत्रप नेताओं से समझौता करने के मूड में नहीं है। इसमें दो राज्यों- दिल्ली और तेलंगाना का नाम खासतौर से लिया जा सकता है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस अकेले और आक्रामक राजनीति कर रही है, जो केंद्रीय संगठन की राजनीति से अलग है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जब सीबीआई का समन मिला तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उनको फोन करके समर्थन जताया था लेकिन कांग्रेस के दूसरे नेता केजरीवाल पर लगातार हमला कर रहे हैं।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन ने उप राज्यपाल को चिट्ठी लिख कर कहा है कि केजरीवाल ने अपने बंगले की साज सज्जा पर 45 करोड़ नहीं, बल्कि 171 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। उप राज्यपाल ने इस चिट्ठी को जांच के लिए मुख्य सचिव के पास भेजा है। इसी तरह पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने फीडबैक यूनिट के जरिए नेताओं की जासूसी कराने के मामले में केजरीवाल के ऊपर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग की है।
दिल्ली की तरह ही तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ दल भारत राष्ट्र समिति के खिलाफ हमलावर है। कर्नाटक चुनाव के बीच प्रियंका गांधी वाड्रा ने तेलंगाना जाकर एक बड़ी रैली की, जिसमें उन्होंने राज्य सरकार को जम कर निशाना बनाया। प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी भी लगातार के चंद्रशेखर राव और उनकी सरकार के खिलाफ हमलावर हैं। प्रियंका ने तेलंगाना के गठन का श्रेय सोनिया गांधी को दिया और कांग्रेस के लिए समर्थन मांगा। इससे लग रहा है कि कांग्रेस राज्य में या तो तालमेल नहीं करेगी और अगर करेगी तो कम सीटों पर राजी नहीं होगी।