कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपनी टीम बना रहे हैं। वह नई टीम चौंकाने वाली होगी। क्योंकि नई टीम बनने से पहले पार्टी के अंदर पुराने नेताओं की बेचैनी दिखने लगी है। बताया जा रहा है कि सोनिया और राहुल गांधी किसी बात में दखल नहीं दे रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि पार्टी के पुराने नेता और खास कर परिवार के प्रति निष्ठावान नेताओं को अपनी पोजिशनिंग खुद करनी पड़ रही है। दूसरी ओर खड़गे के अध्यक्ष बनने से उत्साहित नए नेताओं की एक टीम जगह लेने के लिए बेकरार है। सो, अंदरूनी टकराव शुरू हो गया है और यह संसद से लेकर बाहर तक दिख रहा है।
हालांकि ऐसा नहीं है कि खड़गे परिवार का ख्याल रख कर काम नहीं कर रहे हैं। वे परिवार की भावनाओं का पूरा ख्याल रख रहे हैं लेकिन मैसेज यह बनवाया गया है कि वे स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं और सोनिया व राहुल गांधी कोई दखल नहीं दे रहे हैं। तभी प्रमोद तिवारी को लेकर विवाद छिड़ा है। खड़गे ने उनको राज्यसभा में पार्टी का उप नेता बनाया। यह पद पिछले साल आनंद शर्मा का कार्यकाल खत्म होने के बाद से खाली थी। बताया जा रहा है कि कांग्रेस को दो ताकतवर महासचिवों ने प्रमोद तिवारी को उप नेता बनाने का विरोध किया था। लेकिन खड़गे ने किसी की नहीं सुनी और उनको अपने नीचे डिप्टी लीडर बना दिया।
इसी तरह संसद के चालू सत्र में खड़गे एक दिन के लिए अपने गृह प्रदेश कर्नाटक के दौरे पर गए, जहां अगले दो महीने में चुनाव होने वाले हैं। उन्होंने विपक्ष के साथ तालमेल करने और साझा प्रेस कांफ्रेंस करने का जिम्मा प्रमोद तिवारी को दिया था। लेकिन पार्टी के एक महासचिव चाहते थे कि पूर्व केंद्रीय वित्त व गृह मंत्री पी चिदंबरम प्रेस कांफ्रेंस करें। उन्होंने इसके लिए बहुत प्रयास किया परंतु तिवारी तैयार नहीं हुए। वे खड़गे के आदेश के अनुपालन पर अड़े रहे। उनके तेवर देख कर महासचिव महोदय को पीछे हटना पड़ा। बाद में विपक्ष की साझा प्रेस कांफ्रेंस से दोनों नदारद रहे।
इसी तरह कांग्रेस में दो नए सचिवों की नियुक्ति हुई है, जिनके बारे में किसी को अंदाजा नहीं था। नियुक्ति के बाद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के दफ्तर में सब उनके बारे में पूछ रहे थे लेकिन किसी को उनके बारे में पता नहीं था। यह कांग्रेस के लिए बिल्कुल नई बात है क्योंकि कांग्रेस में आमतौर पर उन्हीं नेताओं को संगठन में जगह मिलती है, जो मीडिया या किसी और तरीके से चर्चा में रहते हैं। जमीनी कार्यकर्ताओं को अक्सर मौका नहीं मिलता है। यह भाजपा में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का मॉडल है कि कहीं से पार्टी के साधारण कार्यकर्ता को उठा कर राज्यसभा में भेज दिया या मंत्री बना दिया। खड़गे ने उस तरह की पहल की है। इससे कई पुराने और चर्चित नेता घबराए हैं। उनको लग रहा है कि कहीं नई टीम से उनका पत्ता न कट जाए। खड़गे की टीम में समन्वय बनाने के लिए रखे गए चार सदस्यों और दो नए सचिवों को देख कर अंदाजा हो रहा है कि आगे कैसी नियुक्तियां होनी हैं।