राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

महाराष्ट्र के सहयोगियों से कांग्रेस को समस्या

महाराष्ट्र के दोनों सहयोगियों ने कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी की हुई है। कभी उद्धव ठाकरे कांग्रेस के वैचारिक मुद्दे की हवा निकाल रहे हैं तो कभी शरद पवार सबसे बड़े चुनावी मुद्दे को फुस्स कर दे रहे हैं। तभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले सीना ठोक कर कांग्रेस के नेताओं से कह रहे हैं कि पार्टी को अलग हो जाना चाहिए। उन्होंने पहले भी कहा था कि शिव सेना किसी स्थिति में कांग्रेस की स्वाभाविक सहयोगी नहीं हो सकती है। एनसीपी जरूर स्वाभाविक सहयोगी है लेकिन जब कॉरपोरेट को बचाने की बारी आएगी तो वह भी कांग्रेस के साथ नहीं खड़ी होगी।

यही हुआ है गौतम अदानी के मामले में। जैसे ही संसद का बजट सत्र खत्म हुआ वैसे ही शरद पवार ने अदानी का समर्थन कर दिया। उन्होंने अदानी के स्वामित्व वाले न्यूज चैनल को इंटरव्यू दिया और कहा कि हिंडनबर्ग के बारे में कोई नहीं जानता है और न उसकी साख के बारे में पता है। उन्होंने कहा कि हिंडनबर्ग वे जान बूझकर एक औद्योगिक घराने को निशाना बनाया। पवार ने अदानी-अबांनी की तुलना टाटा-बिरला से की और संसद में जेपीसी बनाने की मांग को भी गलत बताया। सोचें, पवार की पूरी पार्टी जेपीसी की मांग में कांग्रेस के साथ शामिल थी और रोज हंगामा कर रही थी लेकिन जैसे ही सत्र खत्म हुआ वैसे ही उनकी आंखें खुल गईं और जेपीसी की मांग गलत लगने लगी।

असल यह कांग्रेस का एजेंडा पंक्चर करने की मुहिम का हिस्सा है। ध्यान रहे पिछले कई संसदीय सत्रों से देखने को मिला है कि संसद में सभी पार्टियां कांग्रेस के साथ होती हैं लेकिन सत्र खत्म होते ही कांग्रेस का विरोध करने लगती हैं। इस बार कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सत्र में बनी एकता को आगे भी कायम रखने के लिए नीतीश कुमार, एमके स्टालिन और उद्धव ठाकरे से बात की थी। कांग्रेस इस तैयारी में थी कि अदानी के मुद्दे को कर्नाटक में बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया जाए और भ्रष्टाचार के मसले पर भाजपा को घेरा जाए। लेकिन उससे पहले ही पवार ने उसका गुब्बारा फोड़ दिया।

पिछले दिनों सावरकर पर राहुल गांधी के बयान को लेकर उद्धव ठाकरे नाराज हो गए थे। उन्होंने तालमेल खत्म करने तक की धमकी दे दी थी। उसके बाद कई दिन तक शिव सेना के नेता कांग्रेस की बैठकों का बहिष्कार करते रहे थे। तब भी शरद पवार ने कांग्रेस पर दबाव बनाया था कि उसके नेता सावरकर के बारे में बोलना बंद करें। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि हिंदुत्व को लेकर वह कुछ बोलती है और सावरकर के बहाने वैचारिक लड़ाई की जमीन तैयार करती है तो शिव सेना को दिक्कत होती है और कॉरपोरेट के खिलाफ लड़ाई छेड़ती है तो एनसीपी को दिक्कत होती है। सो, कांग्रेस के नेता इन महाराष्ट्र के बाहर इन दोनों सहयोगियों की अनदेखी करके बाकी पार्टियों के सहयोग से अपना एजेंडा आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

By NI Political Desk

Get insights from the Nayaindia Political Desk, offering in-depth analysis, updates, and breaking news on Indian politics. From government policies to election coverage, we keep you informed on key political developments shaping the nation.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *