कांग्रेस पार्टी अभी लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे या एडजस्टमेंट के बारे में बात नहीं करना चाहती है। दूसरी ओर उसकी कई सहयोगी पार्टियां और विपक्षी एकता के प्रयास में जुटी पार्टियों के नेता चाहते हैं कि अभी से ही सीटों का बंटवारा तय हो जाए ताकि सभी पार्टियां अपनी तैयारी में जुटें। ऐसी पार्टियां जो चाहती हैं कि पूरे देश में भाजपा के खिलाफ हर सीट पर विपक्ष का भी एक उम्मीदवार हो उनको लग रहा है कि सीटों का बंटवारा हो जाने से तस्वीर साफ हो जाएगी और उनको उम्मीदवार तय करने में आसानी होगी।
सीट बंटवारा चाहने वाली पार्टियों का एक तर्क यह है कि अब चुनाव में सिर्फ 10 महीने का समय रह गया है और दूसरा तर्क यह है कि इस साल के अंत में जहां भी चुनाव होने वहां ज्यादातर प्रादेशिक पार्टियों को नहीं लड़ना है। तृणमूल कांग्रेस से लेकर राजद, जदयू, एनसीपी, शिव सेना उद्धव ठाकरे गुट, लेफ्ट पार्टियां और यहां तक कि सपा को तेलंगाना, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में या तो चुनाव नहीं लड़ना है या लड़ना है तो इक्का दुक्का सीटों पर लड़ना है। ऐसी पार्टियों को लगता है कि अगर सीट बंटवारा अभी हो जाए तो वे अपने अपने असर वाले राज्य में चुनाव की तैयारी में जुटें।
दूसरी ओर कांग्रेस को लग रहा है कि अभी लोकसभा चुनाव के लिहाज से सीट बंटवारे के काम में पार्टी उलझी तो इस साल के अंत में होने वाले चुनावों में उसका अभियान पटरी से उतरेगा। कांग्रेस को अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारी में नहीं जुटना है। कांग्रेस के एक जानकार नेता ने कहा है कि पार्टी के पास न जन संसाधन ज्यादा हैं और न धन संसाधन। दोनों की कमी है। और जो कुछ भी पार्टी के पास है वह सब कुछ वह चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में झोंकेगी। उसके बाद ही लोकसभा चुनाव के बारे में सोचेगी।
लोकसभा चुनाव के बारे में अभी से बात नहीं करने की कांग्रेस की रणनीति के पीछे एक कारण यह भी है कि पार्टी चाहती है कि साल के अंत में होने वाले चुनाव में आम आदमी पार्टी और एक्सपोज हो। यह तय है कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगभग सभी सीटों पर लड़ेगी। वह कर्नाटक में भी दो सौ से ज्यादा सीटों पर लड़ी थी और किसी सीट पर उसके उम्मीदवार की जमानत नहीं बच पाई थी। कांग्रेस हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में भी उसको एक्सपोज करना चाहती है ताकि लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की बातचीत में उसे अलग थलग किया जा सके। इसी तरह तेलंगाना में कांग्रेस बिल्कुल हाशिए पर है लेकिन कर्नाटक के बाद उसको लग रहा है कि इस चुनाव में उसका प्रदर्शन बेहतर होगा। तब लोकसभा की सीटों के बंटवारे में वह के चंद्रशेखर राव की पार्टी के साथ बराबरी पर बात करने की स्थिति में होगी या उनकी पार्टी को गठबंधन से बाहर रखने की स्थिति में होगी।