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कांग्रेस को ममता, केसीआर की जरूरत नहीं!

ममता बनर्जी ने कहा है कि वे कांग्रेस की मदद करने को तैयार हैं, बदले में कांग्रेस उनसे लड़ना बंद करे। उधर के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर ने भी कहा है कि वे कांग्रेस से गठबंधन के खिलाफ नहीं हैं। सवाल है कि इन दोनों नेताओं का कांग्रेस के प्रति सद्भाव दिखाने का क्या मतलब है? क्या कर्नाटक चुनाव नतीजों की वजह से दोनों की सोच बदली है या कोई और बात है? असल में दोनों राज्यों का समीकरण इस तरह का है कि वहां इन दोनों नेताओं को कांग्रेस की जरूरत पड़ सकती है या कांग्रेस अगर बहुत आक्रामक अभियान चलाती है, खासकर कर्नाटक के बाद तो दोनों को नुकसान होगा।

असल में कांग्रेस में ममता बनर्जी को लेकर बहुत अच्छी राय नहीं है और यही कारण है कि अभी तक अधीर रंजन चौधरी को वहां का अध्यक्ष रखा गया है। उन्होंने ही ममता की बात का जवाब भी दिया। ममता ने पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। गोवा में कांग्रेस के नेताओं को तोड़ा, उन्हें पैसे दिए और चुनाव लड़ा। ममता की पार्टी को 5.2 फीसदी वोट मिले, जो शुद्ध रूप से कांग्रेस का वोट था। पिछले चुनाव के मुकाबले 2022 में कांग्रेस के 4.9 फीसदी वोट कम हुए थे और उसकी सीटों की संख्या 17 से घट कर 11 रह गई थी। इसी तरह ममता ने मेघालय में पूरी कांग्रेस पार्टी को तोड़ कर अपनी पार्टी में शामिल करा लिया था। मुकुल संगमा के साथ सभी कांग्रेस विधायक तृणमूल में चले गए थे। त्रिपुरा में भी ममता ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। असम में सुष्मिता देब को तोड़ कर अपनी पार्टी में शामिल कराया। बंगाल में मौसम नूर को अपनी पार्टी में लिया।

इतना ही नहीं ममता और केसीआर ने पिछले दो साल में देश भर में घूम कर कांग्रेस को किनारे करने और गैर कांग्रेस, गैर भाजपा मोर्चा बनाने में अपना पूरा दम लगाया। तभी कांग्रेस पार्टी के नेता दोनों के सद्भाव दिखाने को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। कांग्रेस के जानकार सूत्रों के मुताबिक पार्टी पश्चिम बंगाल और तेलंगाना दोनों जगह लड़ने की तैयारी कर रही है। कर्नाटक में जिस तरह से मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ जुड़ा है उसे देख कर कांग्रेस को लग रहा है कि वह इन राज्यों में पहले से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।

कांग्रेस को इन दोनों पार्टियों की जरूरत इस वजह से भी नहीं है क्योंकि जहां भी कांग्रेस को अकेले लड़ना है या कांग्रेस मजबूत है वहां इन दोनों पार्टियों का कोई अस्तित्व नहीं है। इस साल के अंत में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव होना है, जहां न ममता की पार्टी है और केसीआर की। तेलंगाना में केसीआर की पार्टी सरकार में है, जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला केसीआर की पार्टी भारत राष्ट्र समिति के साथ है। प्रियंका गांधी वाड्रा ने वहां का चुनाव अभियान शुरू कर दिया है। कांग्रेस की एक बड़ी रैली वहां हो चुकी है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 28 फीसदी और केसीआर की पार्टी को 47 फीसदी वोट मिले थे। अब 10 साल के राज के बाद उनकी पार्टी के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी बढ़ी है और इस बार कांग्रेस चुनाव के लिए बेहतर तैयारी कर रही है। कर्नाटक में शपथ समारोह में केसीआर को नहीं बुलाना इसी राजनीति का हिस्सा है।

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