ऐसा लग रहा है कि इस बार भी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में मध्य वर्ग को कुछ नहीं मिलने वाला है। केंद्र सरकार का समूचा फोकस गरीब कल्याण में लगा हुआ है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत पांच किलो मुफ्त अनाज का ऐलान हो चुका है और हो सकता है कि बजट में कुछ और बड़ी घोषणाएं हों। लेकिन मध्य वर्ग, जिसका आकार लगातार सिकुड़ता जा रहा है वह इस बार भी सरकार की कृपा का इंतजार करता रह जाए। असल में केंद्रीय वित्त मंत्री ने पिछले दिनों आरएसएस के मुखपत्र ‘पांचजन्य’ के 75 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि मध्य वर्ग के लिए सरकार पहले ही काफी काम कर चुकी है।
वित्त मंत्री ने बहुत जोर देकर कहा कि सरकार ने मध्य वर्ग के ऊपर कोई टैक्स नहीं लगाया है। सोचें, बिना टैक्स लगाए ही प्रत्यक्ष कर यानी आयकर संग्रह में एक चौथाई से ज्यादा की बढ़ोतरी हो रही है, पेट्रोल व डीजल से सरकार को एक साल में आठ लाख करोड़ रुपए की आय होने वाली है और जीएसटी का मासिक संग्रह एक लाख 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है, जिसमें 64 फीसदी हिस्सा सबसे निचले तबके की 50 फीसदी आबादी का है। इसी तरह उन्होंने कहा कि मेट्रो का विस्तार हुआ है, जो मध्य वर्ग के फायदे के लिए है। यह भी सोचने की बात है क्योंकि मेट्रो को सार्वजनिक परिवहन का रॉल्स रायस कहा जाता है। यानी यह सबसे महंगी सार्वजनिक परिवहन सेवा है। ऊपर से केंद्र सरकार इसके किराए में न खुद छूट दे रही है और न राज्य सरकारों को देने दे रही है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार ने पहल की थी लेकिन कामयाब नहीं हुए।
मध्य वर्ग के फायदे की तीसरी बात वित्त मंत्री ने स्मार्ट सिटी की कही। सरकार ने एक सौ शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान किया था। जिन शहरों को स्मार्ट सिटी की श्रेणी में रखा गया है वहां क्या स्थिति यह किसी से छिपी नहीं है। इस योजना के तहत कोई नया बुनियादी ढांचा शायद ही किसी शहर में विकसित हुआ है। यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि सरकार बुनियादी ढांचे के विकास की योजनाओं को एक वर्ग के साथ जोड़ कर उसे संतुष्ट करने की बात कर रही है।