बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बडा जोखिम लिया है। डीएम हत्याकांड में जेल में बंद आनंद मोहन को रिहा कराने का फैसला आसान नहीं है। पहले कई बार इसका प्रयास हुआ। एक समय ऐसा भी हुआ था, जब नीतीश कुमार आनंद मोहन के घर गए थे और पूरे परिवार से मिले थे लेकिन तब भी उनकी रिहाई नहीं कराई थी। अब जबकि वे राजद के साथ हैं और भाजपा के खिलाफ अगले लोकसभा चुनाव में निर्णायक लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं तो उन्होंने कानून बदल कर आनंद मोहन को रिहा कराया है। इस फैसले के खिलाफ दलित लामबंदी के प्रयास हो रहे हैं तो आईएएस एसोसिएशन ने भी विरोध दर्ज कराया है। ध्यान रहे नीतीश कुमार का पूरा शासन अधिकारियों के सहारे चलता रहा है। उनकी नाराजगी का जोखिम भी नीतीश ने उठाया है।
तभी सवाल है कि इसका कितना फायदा होगा महागठबंधन को? राजपूत जाति में आनंद मोहन के असर को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे इस वोट को महागठबंधन की मोड़ सकते हैं। ऐसे लग रहा है कि रणनीति के तहत नीतीश कुमार ने इस वोट के कंसोलिडेशन का प्रयास किया है। ध्यान रहे बिहार में पारंपरिक रूप से राजपूत और भूमिहार एक दूसरे के खिलाफ वोट करते हैं। आनंद मोहन इकलौते नेता हैं, जिन्होंने 1995 में इन दोनों जातियों को काफी हद तक एक साथ किया था। अभी आनंद मोहन और ललन सिंह के जरिए महागठबंधन फिर वही प्रयास कर रहा है। अगर इसमें 50 फीसदी भी कामयाबी मिलती है तो बिहार में भाजपा की संभावना बहुत कमजोर हो जाएगी। जहां तक दलित की नाराजगी का सवाल है तो नीतीश को भरोसा है कि चिराग पासवान के भाजपा के साथ जाने के बाद महादलित वोट उधर नहीं जाएगा, वह महागठबंधन के साथ ही रहेगा।