राजनीतिक घटनाक्रम से अलग एक दूसरा खेल चल रहा है। उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन और पूर्व सांसद अतीक अहमद को गुजरात के साबरमती से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज लाने और प्रयागराज से वापस साबरमती ले जाने का खेल चल रहा है। 20 दिन में दूसरी बार अतीक को साबरमती से प्रयागराज लाया गया है। पहले मार्च के आखिरी हफ्ते में जब राहुल गांधी को सजा हुई थी और सदस्यता गई थी उस समय चार दिन तक यह ड्रामा चला था। पहली बार सड़क के रास्ते 25 घंटे में अतीक अहमद को साबरमती से प्रयागराज ले जाया गया था। पूरे रास्ते दर्जनों न्यूज चैनलों की गाड़ी पुलिस के काफिले के साथ चलती रही थी और मिनट टू मिनट रिपोर्टिंग होती रही थी। प्रयागराज की अदालत में पेशी के बाद उसी दिन शाम को फिर अतीक को साबरमती ले जाया गया।
अब फिर 12 अप्रैल को उसे साबरमती से प्रयागराज लाया गया है। इस बार फिर वही ड्रामा हुआ। साबरमती से गाड़ियों के काफिले में सड़क के रास्ते उसको प्रयागराज लाया गया। रास्ते में गाड़ी खराब हो गई तो राजस्थान के एक थाने में अतीक को ढाई घंटे बैठाया गया। कहीं गाड़ी खराब होती है या अतीक को गाड़ी से उतारा जाता है तो मीडिया में हल्ला मच जाता है। मुठभेड़ में उत्तर प्रदेश पुलिस का इतिहास देखते हुए दिन भर यह कहानी मीडिया में चलती है कि विकास दुबे की तरह अतीक की गाड़ी भी पलट सकती है और उसका भी एनकाउंटर हो सकता है। सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पहली बार जिस तरह से पुलिस उसे हवाईजहाज से अहमदाबाद ले गई थी उसी तरह से अब भी क्यों नहीं किया जा रहा है? आजकल तो पेशी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हो जाती है। लेकिन अगर पुलिस वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेशी नहीं करा रही है तो हवाईजहाज से लाने ले जाने का काम हो। उसमें समय भी बचेगा और पैसे भी बचेंगे। लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस की उसमें दिलचस्पी नहीं है।