लोकसभा और विधानसभाओं में महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद सारी पार्टियां पीठ थपथपा रही हैं और छाती पीट कर अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने का ऐलान कर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को पार्टी मुख्यालय गए, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं इकट्ठा थीं और प्रधानमंत्री ने उनके पैर छुए। दूसरी ओर उसी समय कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस करके महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता जताई। लेकिन हकीकत यह है कि महिलाओं को टिकट देने के मामले में दोनों पार्टियां फिसड्डी हैं। इस बात को समझने के लिए बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है। चार महीने पहले हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के आंकड़ों से इस बात का पता चल जाएगा।
महिला आरक्षण बिल पास होने से ठीक पहले कर्नाटक का विधानसभा चुनाव हुआ था। राज्य की 224 सीटों की विधानसभा में भाजपा ने सिर्फ 12 महिला उम्मीदवार उतारे यानी पांच फीसदी से भी कम। इसके जवाब में कांग्रेस ने उससे एक कम यानी 11 महिला उम्मीदवार उतारे। सोचें, इन दोनों पार्टियों की हिप्पोक्रेसी पर! सितंबर के महीने में दोनों पार्टियां छाती पीट रही हैं कि वे महिलाओं को 33 फीसदी प्रतिनिधित्व देने के लिए कितनी प्रतिबद्ध हैं, लेकिन चार महीने पहले कर्नाटक के चुनाव में दोनों ने पांच-पांच फीसदी टिकट देना भी जरूरी नहीं समझा था! उससे पहले 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 15 और भाजपा ने सिर्फ छह टिकट महिलाओं को दी थी। छह टिकट का मतलब है ढाई फीसदी! पिछले साल के अंत में प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में विधानसभा चुनाव हुआ था, जहां 182 सीटों में से भाजपा ने 18 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए थे। यानी 10 फीसदी। अब अचानक नारी शक्ति वंदन का नारा बुलंद हो गया है।