भारत में इस प्रचलित कहानी की सचाई जांचने का बड़ा मौका आया है कि देश में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बाजार के हवाले कर दी गई हैं। यह कहानी बरसों से देश के लोगों को सुनाई जाती है कि पेट्रोल और डीजल की कीमत बाजार के हिसाब से पेट्रोलियम कंपनियां तय करती हैं और उसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है। वैसे तो यह काल्पनिक कहानी है, जिसमें पात्र, स्थान आदि सब काल्पनिक हैं। लेकिन अगर इसमें जरा सी भी सचाई है तो उसे साबित करने का मौका आया है। दुनिया के बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग घटी है, जिसकी वजह से कच्चे तेल की कीमत पिछले तीन साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस समय कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल से कम है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 69.25 डॉलर है। कोरोना की दूसरी लहर के समय कच्चे तेल की कीमत इतनी कम हुई थी और तभी आपदा में अवसर बनाते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने उत्पाद शुल्क आदि बढ़ा कर कीमत सौ रुपए लीटर तक पहुंचा दी थी। तब से पेट्रोल और डीजल की कीमत 90 से सौ रुपए लीटर के आसपास ही है। अगर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बाजार के अधीन है तो पेट्रोलियम कंपनियों को पेट्रोल और डीजल की कीमत में बड़ी कटौती करनी चाहिए क्योंकि कच्चा तेल तीन साल के निचले स्तर पर है। कंपनियां डॉलर महंगा होने का बहाना बना सकती हैं लेकिन उसके मुकाबले कच्चे तेल की कीमत कम होने का अनुपात बहुत ज्यादा है। इसका लाभ आम लोगों को मिलना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि वह कंपनियों पर दबाव बनाए कि वे अपना खजाना भरने की बजाय आम लोगों को कीमत में राहत दें।