देवेंद्र फड़नवीस का महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना क्या भारतीय जनता पार्टी की पुरानी राजनीति के वापस लौटने का संकेत है? यह बड़ा सवाल है, जिसका जवाब अभी तुरंत नहीं मिलेगा लेकिन पुरानी राजनीति का ट्रेंड उभरता हुआ साफ देखा जा सकता है। पुरानी राजनीति का मतलब है उस समय की राजनीति, जब भाजपा में सब कुछ पहले से तय होता था। कुछ भी चौंकाने वाला नहीं होता था। पार्टी के प्रादेशिक क्षत्रप अपनी राजनीति करते थे और केंद्र में जिसके हाथ में भी पार्टी की कमान रहे उससे उनकी राजनीति पर फर्क नहीं पड़ता था। हर राज्य में भाजपा के पास बड़ा चेहरा होता था और पहले से लोगों को पता होता था कि अगर भाजपा की सरकार बनेगी तो कौन मुख्यमंत्री बनेगा। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के हाथ में भाजपा की कमान आने के बाद इसमें बदलाव आया था। सब कुछ अनप्रेडिक्टेबल हो गया था। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो किसी को अंदाजा नहीं होता था कि भाजपा की सरकार बनी तो कौन मुख्यमंत्री बनेगा।
लंबे समय के बाद महाराष्ट्र में सबका अंदाजा सही साबित हुआ है। मतदान के पहले से कहा जा रहा था कि अगर भाजपा जीती तो देवेंद्र फड़नवीस मुख्यमंत्री होंगे। नतीजे आने के बाद नेता तय करने में 12 दिन का समय लगा और दिल्ली, मुंबई की बड़ी दौड़ लगी। परंतु अंत में फड़नवीस मुख्यमंत्री बने। वे चुनाव में भाजपा की ओर से सबसे लोकप्रिय चेहरा थे और साथ ही पार्टी व राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ दोनों की ओर से यह संदेश केंद्रीय नेतृत्व को दिया जा रहा था कि अगर उनको सीएम नहीं बनाया गया तो पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा। यह भी कहा गया कि किसी अनजान या गुमनाम चेहरे को महाराष्ट्र जैसे राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया तो भाजपा की आगे की राजनीति मुश्किल में आएगी। चेतावनी देने के अंदाज में यहां तक कहा गया कि यह आखिरी चुनाव नहीं है।
इस तरह से किसी भी अनजान, गुमनाम चेहरे को मुख्यमंत्री बना देने की राजनीति थम गई है। पिछले साल जिस तरह से राजस्थान, मध्य प्रदेश और इस साल ओडिशा में मुख्यमंत्री का चयन किया गया उसमें भाजपा की राजनीति की मौजूदा प्रवृत्ति साफ दिख रही थी। तभी महाराष्ट्र को लेकर भी कई तरह के संशय थे। लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा और संघ दोनों को समझ में आया है कि लोकप्रिय व मजबूत नेता की बजाय किसी को भी मुख्यमंत्री बना देने की राजनीति हर जगह काम नहीं करेगी। खासतौर से ऐसी जगहों पर जहां गठबंधन की राजनीति होती है या प्रदेश बड़ा हो और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो। तभी भाजपा के कई प्रादेशिक क्षत्रप अब उम्मीद कर रहे हैं कि जैसे फड़नवीस के दिन लौटे हैं वैसे उनके भी दिन लौटेंगे। जानकार सूत्रों का कहना है कि प्रयोग के तौर पर जो नए चेहरे राज्यों में आगे किए गए उनमें से एकाध को छोड़ कर बाकी अपनी छाप नहीं छोड़ पा रहे हैं। ऐसे में सब कुछ केंद्रीय नेतृत्व के कंधे पर आ जाता है। तभी यह चर्चा शुरू हो गई है कि अगली बार अगर सारे चुनाव एक साथ होते हैं तो प्रदेशों में भाजपा अपने मजबूत क्षत्रपों के चेहरे आगे करेगी। ताकि मतदाताओं में किसी तरह का कंफ्यूजन न रहे। महाराष्ट्र का यह ट्रेंड कितना स्थायी है इसका पता 2026 और 2027 में होने वाले राज्यों के चुनावों से लगेगा।