महाराष्ट्र में विधानसभा का कार्यकाल मंगलवार, 26 नवंबर की आधी रात को समाप्त हो गया और नई सरकार भी शपथ नहीं ले पाई। इसके बावजूद राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया। कहा जा रहा है कि राज्य के चुनाव अधिकारियों ने राज्यपाल को नए चुने गए विधायकों के नाम के साथ राजपत्र की प्रतियां सौंप दी हैं। इसलिए 15वीं विधानसभा अस्तित्व में आ चुकी है। कहा जा रहा है कि जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 73 के मुताबिक चुने गए सदस्यों के नामों की अधिसूचना राज्यपाल के सामने प्रस्तुत करने के बाद विधानसभा का विधिवत गठन हो जाता है।
हो सकता है कि यह तकनीकी स्थिति हो लेकिन क्या इस तकनीकी स्थिति का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया जा रहा है कि सरकार भाजपा को बनानी है? क्या कांग्रेस और उसके गठबंधन को बहुमत मिला होता, उनको सरकार बनानी होती और तीन दिन में सरकार नहीं बना पाते तब भी यही कहा जाता कि कोई बात नहीं आपको जब तक मन हो सरकार बनाइए, एकनाथ शिंदे तब तक कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहेंगे?
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ऐसा कतई नहीं कहा जाता क्योंकि अगर कांग्रेस और उसके गठबंधन को सरकार बनानी होती। और तीन दिन में विधानसभा का की समय सीमा खत्म होने तक सरकार का गठन नहीं हो पाता तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता।
संभवतः इसी योजना के साथ विधानसभा की समय सीमा खत्म होने से तीन दिन पहले मतगणना तय की गई थी। ऐसा मानने का कारण 2019 का और 2014 का इतिहास है। याद करें 2019 में क्या हुआ था?
चुनाव में भाजपा और शिव सेना का गठबंधन जीत गया था लेकिन उद्धव ठाकरे ढाई ढाई साल सत्ता में साझेदारी के लिए अड़ गए तो सरकार का गठन नहीं हुआ था और उद्धव ठाकरे कांग्रेस व शरद पवार से बात करने लगे थे तो विधानसभा की समय सीमा खत्म होते ही तुरंत तत्कालीन राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी थी, जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया और 12 नवंबर 2019 को राष्ट्रपति शासन लग गया।
उससे पहले अक्टूबर 2014 में विधानसभा चुनाव से पहले जब एनसीपी ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लिया तब भी कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री को कार्यवाहक नहीं रहने दिया था, बल्कि राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।