Adani BJP ,कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी इस खुलासे से बहुत उत्साह में हैं कि पांच साल पहले 2019 में महाराष्ट्र सरकार के गठन में गतिरोध पैदा होने पर गौतम अडानी ने पहल करके भाजपा और एनसीपी की सरकार बनाने का प्रयास किया था। इस मामले में कई तथ्य सामने आए हैं। लेकिन राहुल गांधी का हमला सिर्फ भाजपा के ऊपर है। वे कह रहे हैं कि भाजपा ने अडानी की मदद के लिए कांग्रेस की सरकार चुरा ली। हालांकि सरकार 2022 में गिरी थी और अडानी की कहानी 2019 में है। परंतु उससे भी बड़ा सवाल यह है कि राहुल और कांग्रेस के दूसरे नेताओं के निशाने पर सिर्फ भाजपा क्यों है? वे एनसीपी के नेता शरद पवार पर सवाल क्यों नहीं उठा रहे हैं या भाजपा पर सवाल उठा रहे हैं तो उसी में एनसीपी भी शामिल है?
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ध्यान रहे अजित पवार ने कहा था कि 2019 के चुनाव नतीजे के बाद जब भाजपा और शिव सेना का तालमेल टूटा तब गौतम अडानी ने एनसीपी की मदद से भाजपा की सरकार बनवाने की पहल की थी। इसके लिए जो बैठक हुई थी उसमें गौतम अडानी शामिल थे। उस बैठक में अजित पवार के मुताबिक भाजपा की ओर से देवेंद्र फड़नवीस शामिल हुए थे, जबकि एनसीपी की ओर से शरद पवार, अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल यानी तीन नेता शामिल हुए थे। अजित पवार ने यह भी कहा कि वे तो पार्टी के कार्यकर्ता हैं और उनके नेता शरद पवार ने जो आदेश दिया उसके मुताबिक वे भाजपा के साथ सरकार में शामिल हुए।
सो, कायदे से राहुल गांधी और कांग्रेस को अडानी समूह के साथ शरद पवार की मिलीभगत का मुद्दा भी उठाना चाहिए। आखिर गौतम अडानी ने पहल करके शरद पवार को भाजपा के साथ सरकार बनाने के लिए तो बैठाया ही था। पिछले एक साल में दो बार सार्वजनिक रूप से गौतम अडानी के शरद पवार के घर जाने और राजनीतिक बातचीत करने की खबरें आई हैं। लेकिन राहुल उन पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस के साथ रह कर गौतम अडानी से बात करने या कारोबार में मदद करने में कोई खामी नहीं है।