हरियाणा में दीपेंद्र हुड्डा के लोकसभा चुनाव जीत जाने के बाद उनके इस्तीफे से खाली हुई राज्यसभा सीट पर भाजपा ने किरण चौधरी को उच्च सदन में भेजा है। वे निर्विरोध चुनाव जीत गई हैं क्योंकि 21 अगस्त को नामांकन की आखिरी तारीख तक किसी ने नामांकन नहीं भरा और 27 अगस्त को नाम वापसी की तारीख खत्म होने के साथ ही उनको निर्विरोध विजयी घोषित कर दिया गया। सवाल है कि कांग्रेस ने उस उपचुनाव में उम्मीदवार क्यों नहीं खड़ा किया? कांग्रेस के उम्मीदवार नहीं खड़ा करने से जननायक जनता पार्टी और इनेलो को यह कहने का मौका मिल रहा है कि कांग्रेस और भाजपा में मिलीभगत है इसलिए कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं दिया।
ध्यान रहे राज्यसभा की यह सीट भूपेंद्र हुड्डा ने कांग्रेस आलाकमान से लगभग जबरदस्ती ली थी। कांग्रेस की दलित नेता कुमारी शैलजा राज्यसभा सांसद थीं। उनका कार्यकाल पूरा हुआ तो कांग्रेस आलाकमान उनको दोबारा भेजना चाहता था लेकिन चूंकि विधायकों में ज्यादा हुडडा समर्थक थे और हुड्डा ने वीटो कर दिया कि दीपेंद्र के लिए उनको सीट चाहिए। सो, 2019 में मामूली अंतर से लोकसभा का चुनाव हारे दीपेंद्र अगले ही साल राज्यसभा चले गए। तभी शैलजा ने उनके लोकसभा चुनाव लड़ने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि अगर दीपेंद्र जीतेंगे तो कांग्रेस को एक राज्यसभा का नुकसान होगा।
बहरहाल, दीपेंद्र लड़े और जीत गए लेकिन उनकी खाली की हुई राज्यसभा सीट पर हुड्डा ने उम्मीदवार नहीं उतारने दिया। सोचें, कांग्रेस पिछले छह महीने से कह रही है भाजपा सरकार अल्पमत में है। जननायक जनता पार्टी के 10 विधायक अलग हो गए हैं। कई निर्दलीय भी कांग्रेस के साथ आ गए हैं। फिर भी कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ी क्योंकि उसको पता था कि दुष्यंत चौटाला की पार्टी एकजुट नहीं रहने वाली है। दूसरे, कांग्रेस के अंदर भी कुछ भितरघात हो सकता है। ऐसे में विधानसभा चुनाव के बीच हार का जोखिम नहीं लिया जा सकता है। कांग्रेस लड़ कर हारती तो विधानसभा चुनाव में माहौल बिगड़ता।