कैडर आधारित पार्टियां अपेक्षाकृत ज्यादा अनुशासित मानी जाती हैं। तभी भाजपा में भी नेताओं का अनुशासन सबसे ऊपर रखा जाता है। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी या नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह की भाजपा के समय बहुत जबरदस्ती अनुशासन थोपा हुआ नहीं था। नेताओं को अपनी पसंद से बयान देने और कुछ फैसले करने की आजादी थी। परंतु नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भाजपा में सौ फीसदी अनुशासन सुनिश्चित किया गया है। वहां सिंगल लाइन कमांड चलती है। सबको वहीं कहना और करना पड़ता है, जो ऊपर से कहा जाता है। राष्ट्रीय राजधानी से लेकर एकदम नीचे पंचायत स्तर पर भी सब कुछ एक तरीके से होता है। परंतु पिछले कुछ दिनों से पार्टी में अनुशासन भंग की अनेक खबरें आ रही हैं। राजस्थान और हरियाणा से लेकर कर्नाटक और मणिपुर तक नेता मनमाने बयान दे रहे हैं और मनमाने तरीके से काम भी कर रहे हैँ। कई काम तो चुनिंदा नेताओं की निजी महत्वाकांक्षा में हो रहे हैं, जिसका राजनीतिक नुकसान भी हो रहा है।
बताया जा रहा है कि कर्नाटक में पार्टी के अंदर जो घमासान मचा है उसमें कहीं न कहीं पार्टी के संगठन महामंत्री की भूमिका है। पता नहीं उनकी कितनी भूमिका है लेकिन यह तो तय है कि पार्टी के आधा दर्जन मजबूत नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र के खिलाफ मोर्चा खोला है। खुलेआम उनके खिलाफ बयान दे रहे हैं और दिल्ली आकर विजयेंद्र को हटाने की मांग कर रहे हैं। दूसरी पार्टियों में ऐसा होता है लेकिन भाजपा में हो रहा है यह हैरान करने वाला है। पार्टी के नेता बासनगौड़ा पाटिल यतनाल इस बगावत का नेतृत्व कर रहे हैं। रमेश जरकिहोली भी इसमें शामिल हैं। बागी नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को नेता माना हुआ है।
हालांकि बोम्मई खुद को इससे अलग रख रहे हैं। ऐसे ही हरियाणा में वरिष्ठ नेता अनिल विज ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के खिलाफ मोर्चा खोला है। वे लगातार उनके खिलाफ बयान दे रहे हैं। उधर राजस्थान में वरिष्ठ नेता किरोड़ीलाल मीणा ने राज्य की अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है। मणिपुर के नेताओं ने तो दिल्ली दरबार में भागदौड़ करके मुख्यमंत्री का इस्तीफा करना दिया। कर्नाटक, हरियाणा और राजस्थान के नेताओं को भी पार्टी की ओर से नोटिस जारी किया गया है।