क्या यह महज संयोग है कि पिछले कुछ समय से चुनाव आयोग जब भी किसी चुनाव का कार्यक्रम घोषित करता है तो बाद में उसमें बदलाव की जरुरत आती है? एक पुरानी कहावत है कि पहली बार हो तो गलती है। दूसरी बार वही गलती हो तो उसे मूर्खता कहते हैं और वही गलती तीसरी बार हो तो वह अपराध कहलाता है। पहले की बात छोड़ दें तो चुनाव आयोग ने सिर्फ इस साल में लगातार तीन बार एक ही गलती की है। उसे चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद उसमें बदलाव करना पड़ा है। पहली बार तो लगा कि आयोग से गलती हुई है। लेकिन दूसरी और तीसरी बार उसी गलती को क्या कहेंगे?
सोचें, चुनाव आयोग किसी राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कितनी तैयारी करता है! उसका पूरी सिस्टम चुनाव की तैयारियों में लगता है। मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्तों राज्यों का दौरा करते हैं। वहां प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ उनकी बैठक होती है। फिर राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ चुनाव आयोग की बैठक होती है। चुनाव आयोग राज्य विशेष की छुट्टियों और त्योहारों की सूची पर विचार करता है। परीक्षाओं और फसल के सीजन से लेकर बारिश और अन्य फैक्टर्स पर विचार किया जाता है और तब चुनाव का कार्यक्रम बनता है। इसके बाद बड़े तामझाम के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त दोनों चुनाव आयुक्तों के साथ विज्ञान भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं, जिसमें चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा होती है। लेकिन बाद में पता चलता है कि गलती हो गई। सो, पहला सवाल तो यही है कि ऐसी गलतियां क्यों हो रही हैं और हो रही हैं तो क्या किसी को उसके लिए सजा दी जा रही है? अगर बार बार चुनाव कार्यक्रम में बार बार बदलाव करना आयोग की गलती नहीं है तो फिर इसे क्या कहा जाए?
इस साल की तीन गलतियों की बात करें तो चुनाव आयोग की पहली गलती लोकसभा चुनाव के समय हुई। लोकसभा के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव भी हुए थे। चुनाव आयोग ने लोकसभा और चारों राज्यों के लिए मतगणना की तारीख चार जून तय की। जब आयोग ने घोषणा कर दी उसके बाद सिक्किम सरकार ने आयोग को बताया कि राज्य की विधानसभा का कार्यकाल तो दो जून को ही खत्म हो रहा है। इसके बाद आयोग को सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की मतगणना दो जून को करानी पड़ी। दूसरी गलति हरियाणा विधानसभा चुनाव के समय हुई। आयोग ने राज्य की सभी 90 सीटों के लिए एक अक्टूबर को मतदान की तारीख तय की। लेकिन प्रचार शुरू हो जाने के बाद अचानक भाजपा और कई संगठनों ने बताया कि एक अक्टूबर को लगतार छुट्टियां हो रही हैं, जिससे मतदान प्रतिशत कम हो सकता है और यह भी बताया कि बिश्नोई समाज का त्योहार है। फिर चुनाव की तारीख आगे बढ़ा कर पांच अक्टूबर की गई। तीसरी गलती 14 राज्यों की 47 विधानसभा सीटों के उपचुनाव की है। आयोग ने अलग अलग कारणों से तीन राज्यों की 14 सीटों के उपचुनाव की तारीख बदल दी है। अब इन सीटों पर 13 नवंबर की बजाय 20 नवंबर को मतदान होगा। महाराष्ट्र में एक अलग कारनामा चुनाव आयोग ने किया है। वहां 23 नवंबर को गिनती होगी और विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को खत्म हो रहा है। अगर नतीजे के बाद तीन दिन में सरकार नहीं बनी तो राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा। पता नहीं ऐसी स्थिति लाने के पीछे कोई जीनियस दिमाग है या गहरी योजना है?